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प्रकार अनेक प्रत्याख्यान, युवावस्था में भी करके, आसक्त जनों के हृदय में चमत्कार उत्पन्न करके धर्म की प्रभावना करे ।
सम्यक्त्व
(८) कवित्वशक्तिप्रभावना - प्रायः देखा जाता है कि कई जगह उपदेश की अपेक्षा भी कविता का असर अधिक होता है । अतएव कविता भी धर्म-प्रभावना का एक अच्छा साधन है। जिन सम्यग्दृष्टि पुरुषों को ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से कविता बनाने की शक्ति प्राप्त हुई हो, उन्हें चाहिए कि वे विषयवासना बढ़ाने वाली, विरोध को उत्तेजना देने वाली या कुमार्गगमन में उत्साह दिलाने वाली कविता करने में अपनी बुद्धि का व्यय न करें, अपनी प्रशस्त शक्ति का दुरुपयोग न करें। जिनेश्वर के, साधु के, साध्वी के, श्रावक या श्राविका के — धर्मात्माओं और गुणवान् विद्वानों के गुणानुवाद करने वाली, संसार से विरक्ति उत्पन्न करने वाली, वैराग्य के परम रमणीक सरोवर में अवगाहन कराने वाली, अध्यात्म के अनोखे आनन्द की झांकी दिखलाने वाली, सरस शान्त रसमयी कविता बनावें और उसे यथोचित अवसर पर रागपूर्वक सुनाकर लोगों में धर्म की प्रभा फैलावें ।
जिस जैनधर्म के प्रताप से अपनी आत्मा उन्नत स्थिति को प्राप्त हुई है, जिस धर्म के प्रसाद से जीवन में अद्भुत शान्ति का अनुभव हुआ है। और अनेक प्रकार की श्राधियाँ - उपाधियाँ मिट गई हैं, जिस धर्म ने जीवन को अन्धकार- पथ से हटा कर प्रकाश की ओर मोड़ दिया है, जिस धर्म की आराधना से जीवन पवित्र, पुनीत, शान्त सन्तोषमय, सुखी और सरल बना है, उस धर्म का प्रभाव दूसरों के सामने प्रकट करना सम्यक्त्वी पुरुषों का कर्त्तव्य है । इस परम कर्त्तव्य को बजाने के लिए ही आठ प्रभावनाओं का प्रतिपादन किया गया है। इनमें से जिसके पास जैसी शक्ति हो, उसी के अनुरूप कार्यं करके धर्म की उन्नति और वृद्धि करे । किन्तु प्रभावक होकर यह अभिमान नहीं करना चाहिए कि 'मैं धर्मप्रभावक हूँ, धर्मदीपक हूँ' आदि । इस प्रकार का अभिमान करने से प्राप्त होने वाले धर्म का महान् फल नष्ट हो जाता है। अतएव यह बात सदैव लक्ष्य में रखना चाहिए ।