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® जैन-तत्व प्रकाश
दसवाँ बोल-आगार छह
(१) राज्याभियोग-राजा अथवा राजा के सामन्त, कर्मचारी वगैरह कदाचित् सम्यक्त्वी की जान, माल, इज्जत, लेने की धमकी देकर सम्यक्त्व से विरुद्ध कार्य करने की आज्ञा दें, और सम्यक्त्वी राजा आदि के प्रत्याचार से डर कर पश्चात्ताप के साथ, सम्यक्त्व से विरुद्ध कार्य करे तो सम्यक्त्व भंग नहीं होता।
(२) गणाभियोग-सम्यक्त्वी के कुटुम्बी, स्वजन तथा जाति के पंच आदि, जो अन्यमतावलम्बी हों, जाति-बहिष्कार आदि की धमकी देकर कुल के देव को, कुल के गुरु को नमन-पूजन आदि सम्यक्त्व-विरुद्ध कार्य करने के लिए विवश करें और उनके दबाव में पड़ कर वह पश्चात्ताप करता हुआ यह कार्य करे तो सम्यक्त्व भंग नहीं होता।
(३) बलाभियोग-कदाचित् कोई धनबली, जनवली, तनवली, विद्याबली (मांत्रिक) सम्यक्त्वी से सम्यक्त्वविरुद्ध कार्य करने के लिए कहे । सम्यक्त्वी उसके अधीन होकर, उसके जुल्म से भयभीत होकर पश्चात्ताप के साथ ऐसा कोई कार्य करे तो सम्यक्त्व भंग नहीं होता।
(४) सुराभियोग-कदाचित कोई देव जान, माल को नष्ट करने की धमकी देकर सम्यक्त्व से विरुद्ध कार्य करने को बाधित करे और उसके उपद्रव से डर कर सम्यक्त्वी पश्चाताप करता हुआ ऐसा कोई कार्य करे तो समकित भंग नहीं होता।
(५) गुरुनिग्रह-(१) माता पिता, ज्येष्ठ भ्राता या बहुतों का माननीय कोई बड़ा पुरुष घर से निकाल देने आदि की धमकी देकर सम्यक्त्व से विरुद्ध कोई काम करने के लिए लाचार करे (२) कोई मिथ्यादृष्टि पुरुष सम्यक्त्वी के देव, गुरु धर्म की प्रशंसा करे और इस अनुराग से प्रेरित हो कर सम्यक्त्वी उसका सत्कार प्रादि करे (३) कदाचित् सम्यक्त्वी को अन्य