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* सम्यक्त्व
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सच्चे प्रभावक हैं ।* भूतकाल में केवलज्ञानी तथा श्रुतकेवली महापुरुषों द्वारा जिनप्रणीत धर्म का असाधारण प्रभाव पड़ता था। ऐसे महापुरुषों का इस समय अभाव हो गया है । अब उनकी वाणी से उद्धृत पचन ही, जो महाविद्वान् प्रभावक गणधरों और प्राचार्यों द्वारा संकलित किये गये हैं, धर्म के स्तंभ रूप-आधार रूप हैं। शास्त्र में कहा में कहा है:न हु जिणे अञ्ज दिस्सई,
बहुमए दिस्सइ मग्गगोचरे । संपइ नेयाउए पहे,
समयं गोयम ! मा प्रमायए ॥
-श्री उत्तराध्ययन, अ० १०, ३१ अर्थात्-श्री महावीर स्वामी ने मोक्ष पधारते समय कहा- हे गौतम ! पाँचवें बारे में जिन तीर्थकरों के दर्शन तो होंगे नहीं, किन्तु मुक्तिमार्ग के उपदेशक होंगे । उनसे न्यायपथ-मुक्तिमार्ग प्राप्त करने में भव्य जीवों को एक समय मात्र का भी प्रमाद नहीं करना चाहिए ।
ऐसी स्थिति में सम्यग्दृष्टि को शास्त्रों का ज्ञान अवश्य करना चाहिए प्राप्त पुरुषों का कथन गहन और परमार्थदर्शक होता है, अत: गुरुगम से शास्त्रों का पठन, चिन्तन, मनन अवश्य करना चाहिए और यथाशक्ति दूसरों को कराना चाहिए। ज्ञान में परिपक्व बना हुआ सम्यक्त्वी अपनी तथा अन्य की आत्मा को उन्मार्ग में गमन करने से रोक कर, सन्मार्ग में स्थापित करके धर्म का प्रभावक बनता है ।
अज्ञानतिमिरव्याप्तिमपाकृत्य यथायथम् । जिनशासनमाहात्म्यप्रकाशः स्यात्प्रभावना ॥
-रत्नकरण्ड श्रावकाचार। अर्थात् व्यापे हुए अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके यथायोग्य जिनेन्द्र भगवान् कोसासन की महिमा को प्रकट करना प्रभावना है।