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ॐ सम्यक्त्व 8
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पर श्रद्धा रखते हैं, थोड़े उपकरण रखने वाले हैं, कमण्डलु-धारक हैं, फलभक्षण करके निर्वाह करते हैं, पानी में रहते हैं, शरीर पर मिट्टी का लेप करने वाले हैं, जो गंगा नदी के उत्तर या दक्षिण किनारे पर रहते हैं, जो शंखध्वनि करके भोजन करने वाले हैं, जो सदैव खड़े रहते हैं, जो ऊर्ध्व दंड रखकर फिरने वाले हैं, मृगतापस हैं, हस्ती-तापस* हैं, जो पूर्व आदि चारों दिशाओं को पूजने वाले हैं, जो वल्कल वस्त्र धारण करते हैं जो सदा रामराम या कृष्ण-कृष्ण रटते रहते हैं, जो खड डे या विल में निवास करते हैं, जो वृक्षों के नीचे रहते हैं, जो सिर्फ पानी पीकर रहते हैं, जो वायु भक्षी हैं, सेवारभक्षी हैं, जो मूल-आहारी या कन्द-आहारी, पत्र-श्राहारी, पुष्प अाहारी हैं, जो स्नान करके भोजन करने वाले हैं, जो पंचामि तापते हैं, जो शीत-ताप मादि कष्टों से शरीर को कसते हैं, जो सूर्य के ताप में रहते हैं, जो सदैव प्रज्वलित भंगारों के पास रहने वाले हैं, इत्यादि अनेक प्रकार से अज्ञान-तप करते हैं, वे आयु पूर्ण करके उत्कृष्ट एक पन्योपम पर एक लाख वर्ष के भायुष्य वाले (चन्द्रविमानवासी) ज्योतिषी देव होते हैं ।
(७) उक्त ग्राम आदि में कितनेक जैन दीक्षा धारण किये हुए होते हैं। वे साधु की बाह्य क्रिया का तो पालन करते हैं किन्तु जो काम को जागृत करने वाली कुकथाएँ करते हैं; नेत्रों से एवं मुख आदि अंगों से कुचेष्टाएँ करते हैं, अयोग्य निर्लज्ज वचन बोलते हैं, वादित्र के सहारे गीत
आदि गाते हैं, जो स्वयं नाचते और दूसरों को नचाते हैं, ऐसे जन कर्मों को उपार्जन करते हुए बहुत वर्षों तक .साधु की ऊपरी क्रिया का पालन करते हैं । वे एक पल्योपम पर एक हजार वर्ष की आयु वाले पहले सौधर्म देवलोक में कंदर्प जाति के देव होते हैं ।
(८) उक्त ग्राम आदि में रहने वाले तापस, जैसे सांख्यमतावलम्बी,
* यह लोग एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय के पुण्य में भेद नहीं समझते। सब जीवों को समान ही समझते हैं। एक हाथी जैसे बड़े जीव का वध करके बहुत दिनों तक अपना उदरनिर्वाह करने में धर्म मानते हैं, अतः सृग या हाथी का वध करते हैं।