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स्वेच्छा के) कष्ट स्वल्प समय तक अथवा दीर्घकाल तक सहन करना पड़े, तो कष्ट सहन करने वाले जीव पुण्य का उपार्जन करते हैं । मृत्यु के अवसर पर अगर शुभ परिणाम आ जाएँ तो दस हजार वर्ष की आयु वाले वाण - व्यन्तर जाति के देवों में उत्पन्न होते हैं ।
* सम्यक्त्व *
(२) उक्त ग्राम आदि स्थानों में रहने वाले मनुष्य अगर कारागार ( कैदखाने में रक्खे गये हों, काष्ठ के खोड़े में डाल दिये गये हों, बेड़ियाँ पहनाई गई हों, पैरों में लकड़ी डाल दी गई हो, रस्सी से बाँधे हुए हों, उनका हाथ, पैर, कान, घाँख, नाक, होठ, दांत, जीभ या मस्तक आदि छेद दिया गया हो, अंडकोश फोड़ डाले गये हों, शरीर के तिलतिल बराबर खण्ड कर दिये गये हों, गड़हे या भूगृह में बंद कर दिये हों, वृक्ष से बाँध दिये हों, चन्दन आदि की तरह शिला पर घिसे गये हों, काष्ठ की तरह वसूले से शरीर को छीला हो, शूली से भेद दिये गये हों, धानी में पीले हों, क्षार यदि तीक्ष्ण वस्तु के पानी को शरीर पर छिड़का हो,
में जलाया हो, कीचड़ में गाड़ दिया हो, भूखे प्यासे रखकर रुला - रुला कर मारा हो, जो इन कारणों से मरे हों अथवा जो मृग-पतंग-भ्रमर-मत्स्यहस्ती आदि की तरह इन्द्रियों के वश में होकर मृत्यु के शिकार हुए हों, जो लिये हुए व्रत को भंग करके उसकी आलोचना किये विना ही मृत्यु को प्राप्त हुए हों, जो वैर-विरोध को उपशमाये बिना क्षमायाचना किये बिना ही मृत्यु को प्राप्त हुए हों, जो पर्वत से अथवा वृक्ष से पड़कर मरे हों, जो हस्ती आदि के कलेवर में प्रवेश करके मरे हों या विष से अथवा शस्त्र से जिनकी मृत्यु हुई हो, इन पूर्वोक्त कारणों में से किसी भी कारण से जो मरे हों, उनको मृत्यु के समय अगर शुभ परिणाम आ जाय वे बारह हजार वर्ष की आयु वाले वाण - व्यन्तर देव होते हैं ।
(३) उक्त ग्राम आदि में रहने वाले जो मनुष्य स्वभाव से ही भद्रसरल स्वभावी हों, स्वभाव से ही क्षमावान् और शीतलस्वभावी हों, स्वभाव ही जिनके क्रोध आदि चारों कषाय श्राज्ञा के अनुसार चलने वाले हों,
से ही विनीत- नम्रात्मा हों, स्वभाव से पतले हों, जो गुप्तेन्द्रिय हों, गुरु की