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* सूत्र
धर्म
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स्थिर अवस्था को प्राप्त होता है, निज गुणों में लीन हो जाता है, इस प्रकार आगम प्रमाण से जानना ।
(७) निर्जरा तत्व पर चार प्रमाण — प्रत्यक्ष -- बारह प्रकार के तपश्चरण से कर्मोच्छेद करने वाले केवली को देखकर निर्जरा को समझना । अनुमानज्ञान दर्शन चारित्र की तथा सम्यक्त्व की वृद्धि होती देख और वायु की प्राप्ति देखकर कर्मों की निर्जरा का अनुमान करना । उपमा — जैसे सोड़ा और पानी से वस्त्र की शुद्धि होती है, सुहागा टंकन क्षार आदि में सोने की शुद्धि होती है, वायु के वेग से बादल दूर हो जाते हैं, सूर्य की शुद्धि होती है इसी प्रकार तपश्चर्या से आत्मा की शुद्धि (निर्जरा) होती है, इस प्रकार की उपमाओं से निर्जरा को जानना । आगम प्रमाण - फल को बांछा से रहित, सम्यक्त्व से युक्त तपस्या करने से सकामनिर्जरा होकर आत्मशुद्धि होती है. ऐसा श्रागमप्रमाण से जानना ।
और पुद्गल एकमेक हो रहे हैं,
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(८) बन्ध तत्र पर चार प्रमाण -- प्रत्यक्ष — क्षीर-नीर की तरह जीव जिसके कारण प्रयोगमा पुद्गल रूप में शरीर का संयोग हो रहा है यह संयोग प्रत्यक्ष से जानना । अनुमान प्रमाण - श्री तीर्थङ्कर केवली, गणधर या साधु का उपदेश सुनने पर भी संशय - व्यामोह दूर न हो, इससे अनुमान करना कि प्रकृतिबंध आदि कठोर हैं । उदाहरणार्थ – चित्तऋषि ने ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती से कहा - 'नियाणमसुहं as' अर्थात् हे राजन् ! पहले किये हुए निदान ( नियाणा) के योग से तुम्हारे ऊपर उपदेश का प्रभाव पड़ना कठिन है ।
इसके अतिरिक्त इन लक्षणों से अनुमान करना कि जीव किस गति में से आया है - १ दीर्घकपायी, २ सदा अभिमानी, ३ मूर्खजनों से प्रीति, ४ उग्र क्रोध, ५ सदा रोगी और ६ खुजली रोग वाला देखकर अनुमान करना कि यह जीव नरक गति से आया है । १ महालोभी, २ परसम्पदा का लोलुप, ३ महाकपटी, ४ मूर्ख, ५ भुखमरा, ६ आलसी, इन छह लक्षणों से अनुमान करना कि यह तिर्यञ्चगति में से आया है । १ श्रल्पलोभी, २ विनयवान्, ३ न्यायी, ४ पापभीरु, ५ निरभिमानता, इन पाँच लक्षणों से