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* मिथ्यात्व ®
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इस्लाम धर्म की किताब में भी लिखा है:
एसाली मुजरक बजात मुतसरी फवी इल्लात । अर्थात्-जीव दर्याफ्त करने वाला है, अपने आपसे कब्जा रखने वाला है साथ औजार के।
इसलिए जो जीव इस संसार में सुख-दुःख भोगता है, सो अपने संचित कर्मों के अनुसार ही जानना । औरों का तो कहना ही क्या है, किन्तु ब्रह्मा विष्णु, महादेव, सूर्य, चन्द्र, राजा आदि सभी कर्माधीन होकर सुख-दुःख भोगते हैं । भतृहरि ने कहा है:
ब्रह्मा येन कुलालवनियमितो ब्रह्माण्डमाण्डोदरे, विष्णुर्येन दशावतारगहने क्षिप्तो महासंकटे । रुद्रो येन कपालपाणिपुटके भिक्षाटनं कारितः,
सूर्यो भ्राम्यति नित्यमेव गगने तस्मै नमः कर्मणे ॥ अर्थात-जिनको लोग कर्ता-धर्चा-हर्ता मानते हैं, वे स्वयं कर्माधीन होकर दुःख के भागी बने । जैसे ब्रह्माजी को मनुष्यों के शरीर रूप बरतन बनाने का प्रयास करना पड़ा। विष्णु को दस अवतार धारण करने का महान् संकट सहना पड़ा। शिवजी को मनुष्य की खोपड़ी हाथ में लेकर भीख माँगने के लिए भटकना पड़ा । सूर्य को प्रतिदिन भ्रमण करने का कष्ट उठाना पड़ता है । जिसने ब्रह्मा आदि की ऐसी गति बनाई, उस कर्म को ही नमस्कार है !
प्रश्न-जब जीव शुभ कर्म करके सुखी होने में समर्थ है तो फिर अशुभ कर्म करके दुःखी क्यों होता है ? दुःख तो किसी को भी प्रिय नहीं है ?
उत्तर-प्रज्ञान से तथा मोह के उदय की प्रबलता से । वकील, बैरिस्टर आदि बुद्धिमान् लोग जानते हैं कि मदिरापान करने से मूर्ख बनना पड़ता है, फिर भी वे मदिरापान करते हैं और पागल बनते हैं । न्यायाधीश मदिरा पीने वाले को सजा देता है और वह स्वयं ब्रांडी की बोतल गटक बान है। इसी से समझा जा सकता है कि मोह की गति बड़ी प्रबल होती