________________
५८२]
* जैन-तत्त्व प्रकाश
उसने अपना ऐब छिपाने के लिए साधु का वेष धारण कर लिया । वह नाचने-कूदने लगा और लोगों से कहने लगा-भाइयो ! अगर किसी को परमात्मा का साक्षात्कार करना है तो अहंकार को-अभिमान को सब से पहले तिलांजलि दे देनी चाहिए । इस शरीर में अहंकार का खास चिह्न नाक है । जो इस नाक को दूर कर देगा, उसी को परमात्मा का साक्षात्कार हो सकेगा। मेरा भाग्य धन्य है ! सत् चित्-आनन्द की क्या ही मनोहर और अनिर्वचनीय झांकी दिखाई दे रही है। अहा ! यह स्वरूप देखते ही बनता है ! बहुत-से भोले लोग उस नकटे साधु के झांसे में आ गये और परमात्मा को साक्षात् देखने को उत्सुक होकर अपनी-अपनी नाक कटा कर उसके चेले बनने लगे। वह साध गरुमंत्र सुनाने के बहाने उस नये नकटे से कह देता-मैं अपना ऐब छिपाने के लिए यह ढोंग कर रहा हूँ। अगर तू ने मेरी हाँ में हाँ नहीं मिलाई तो याद रखना, तेरी आबरू मिट्टी में मिला दूंगा। मैं कह दूँगा कि यह कोई बड़ा भारी पापी है। इसी कारण परमात्मा इसे दर्शन नहीं दे रहे हैं। फिर सब लोग तुझे नकटा पापी कह कर तेरा तिरस्कार करेंगे । यह सुनकर वह डर जाता । वह सोचता-नाक तो कट गया; अब किसी भी उपाय से वह आ नहीं सकता। ऐसी हालत में धूर्त का कहा मानना ही श्रेयस्कर है। ऐसा सोच कर वह भी वैसा ही ढोंग करने लगता था। इस प्रकार करते-करते उसने ५०० चेलों की जमात बना डाली। उसका उपदेश सुनकर एक राजा भी नकटा होने लगा । राजा का प्रधानमंत्री जैन था । उसने कहा-भोले महाराज ! नाक कोई पहाड़ नहीं है, जिसकी
ओट में ईश्वर छिपा हो और जिसके दूर होते ही वह प्रकट हो जाय । नाक कटवा लेने से ईश्वर कदापि नहीं दिखाई दे सकता।
राजा ने कहा-तो क्या यह पाँच सौ साधु-सभी झूठे हैं ?
प्रधान ने कहा-जी हाँ। ठहरिये, मैं असली मर्म का पता लगाने की कोशिश करता हूँ।
इतमा कह कर प्रधान नकटों के मुरु को दूसरे महल में ले गया। गहरा लालच देकर उससे पूछा-सच कहो, क्या तुम्हें वास्तव में ही परमात्मा