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सम्यक्त्व
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दिखाई देता है ? अगर सच कह दोगे तो मुंह माँगा पुरस्कार मिलेगा । झूठ बोले तो याद रखना, इस खंभे से बाँध दिये जानोगे और जीते जी चमड़ी उधड़वा ली जायगी। साधु, मंत्री के प्रभाव में आगया और डर का मारा थर-थर काँपने लगा। बोला-आप मेरे प्राण वचने दीजिए। मैं सच-सच बात बतलाये देता हूँ। वास्तव में हम सब झूठे हैं और अपना ऐव छिपाने के लिए मैंने ही यह करामात की है।
___ इस प्रकार असली भेद खुख गया । राजा नकटा होने से बच गया और दूसरे समझदार लोग भी उसके चकमे में आने से बचे ।
कितने ही लोग जिनेन्द्र-प्रतिपादित कठिन और निरालम्बन वृत्ति का निर्वाह न कर सकने के कारण, मंत्रसिद्धि आदि अनेक प्रकार के लालच दे कर अज्ञानी जनों को भ्रम में फंसा लेते हैं और फिर उन्हें धर्म से भ्रष्ट कर देते हैं । फिर वे पेटार्थी बन कर मान-पूजा के भूखे होकर, उनका ही कहा करते हैं। कोई-कोई जो प्रधानमंत्री के समान बुद्धिमान् होते हैं, वे उनके पाखण्ड में नहीं फँराते, बल्कि अपनी विवेकबुद्धि के द्वारा उस पाखण्ड को प्रकट कर देते हैं और दूसरों को भी बचा लेते हैं ।
(४) कुदसणवजणा–कुदेव, कुगुरु, कुधर्म और कुशास्त्र को मानने वाले, जिन भगवान् के कथन से विपरीत क्रिया करने वाले, कदाग्रही मिथ्यादृष्टियों की संगति न करे । क्योंकि अनन्तकाल तक आत्मा ने मिथ्यात्व के साथ रमण किया है, अतएव आत्मा मिथ्यात्व रो अत्यन्त परिचित हो रहा है । मिथ्यादृष्टियों की बातों का उस पर जल्दी ही असर हो जाता है । अतएव मिथ्यादृष्टि से पहले से ही दूर रहना अच्छा है । भोले लोगों को फंसाने के लिए कितनेक कुदर्शनी कहते हैं-तुम्हारे धर्म की तरह हमारा भी धर्म अहिंसामय है । विशेष भेद कुछ नहीं है। ऐसा सुनकर भोले लोग उनका संसर्ग करने लगते हैं। फिर धीरे-धीरे वे समझाने लगते हैं-अपने सुख भोग के लिए की हुई हिंसा को हिंसा गिनना, किन्तु धर्मार्थ की हुई हिंसा अहिंसा ही है । जैसे तुम्हारे साधु धर्म की रक्षा के लिए नदी उतरते हैं, आदि-आदि। यह सुनकर भोले लोग भ्रम में पड़ जाते हैं, किन्तु जो सुज्ञ जन होते हैं वे