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ॐ मिथ्यात्व
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रचा हुआ भुवनभानु केवली का रास है। उसकी ढाल ८६ में इस प्रकार उन्लेख मिलता है:
मुँहपची मुख बांधी रे, तुम वेसो छो जेम । गुरुजी मुखडूचा देइने रे, बीजा थी वेसाए कम ।। मुख बांधी मुनिनी परे रे, पर दोष न वदे काही।
साधु बिना संसार में रे, क्यारे को दीठा क्या हो । ऐसा ही खुलासावार लेख हितशिक्षा के रास में तथा हश्चिलमच्छी के रास में है. भीमसी भाणेक के द्वारा प्रकाशित 'जैन कथारन कोप' के ७ वें भाग के ४०५ ३ पृष्ठ की १६वीं पंक्ति में छपा है-'उपाश्रयमा रहता माधु माहिला केटलाएक साधुनो तो मुंहपत्ती बांध्या विनाज बोल्या कर छ ।'
एकवीसांगुलायामा, सोलसंगुलविस्थिन्ना
चउक्कारसंजुया य, मुहपोत्तिय एरिसा होई ।। अर्थात् इक्कीस अंगुल लम्बी और सोलह अंगुल चौड़ी, आठ पट वाली मुख-वस्त्रिका होती है। तथा कहा है
मुहणतगेण कणोडिया, विणा बंधइ जे कोवि सावाए । थम्मकिरिया य करती, तस्स इक्कारस सामायिइयस्स
सां पायच्छित्तं भवइ ॥
अर्थात्-मुख पर मुखवस्त्रिका बांधे बिना जो धर्मक्रिया करता है, उसे ग्यारह सामायिक का प्रायश्चित्त पाता है।
इस प्रकार शास्त्रों में तथा ग्रंथों में स्पष्ट कथन होने पर भी उन ग्रंथों को ही मामने वाले मुख पर • मुखवस्त्रिका बाँधे बिना धर्मक्रिया करते हैं। वे जिमेश्वर तथा मुरु की आज्ञा के आराधक किस प्रकार कहला सकते हैं ?
दिगम्बर जैन आम्नाय के गोम्मटमारजी और सुदृष्टितरंगिणी में लिखा है कि ४८ पुरुष, ४० स्त्रियाँ और २० नपुंसक, यों १०८ जीव एक समय में मोक्ष जाते हैं और यही स्त्री को मोक्ष होने का निषेध करते हैं । तलास्त्र में विलशानी के ग्यारह परीषहों में क्षुधा परीषह ग्रहण किया है