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* जैन-तत्त्व प्रकाश
नियतिवाद को भलीभाँति सिद्ध करने के लिए एक दृष्टान्त और लीजिए:- एक बार किसी वृक्ष पर पक्षी-युगल बैठा था । उसे मारने के के लिए एक पारधी ने उधर से अपना बाज छोड़ा और नीचे आप धनुष-वाण लेकर बैठ गया । दैवयोग से वहाँ एक साँप निकला और उसने पारधी के पैर में डँस लिया । इससे उसके हाथ से वाण छूट गया और उसके बाज़ के शरीर में ही जाकर लगा । विष के प्रभाव से पारधी भी बेहोश होकर मर गया । पक्षियों का जोड़ा सही-सलामत रहा ! अब विचार कीजिए कि भाग्य का योग कितना बलवान् है ! महान् भयानक युद्धों में, अति विषम घाव लगने से सख्त घायल हुआ योद्धा, और प्लेग जैसी भयानक बीमारी में मरणासन्न और ज़मीन पर उतार दिया गया रोगी भी होनहार के प्रताप से बच जाता है और वर्षों तक जीवित रहता है। समुद्र के ज्वार-भाटे में बड़ेबड़े जहाज डूब जाते हैं। बड़े शहर में जबर्दस्त आग लग जाती है । भूकम्प से
सपास की वस्ती तहसनहस हो जाती है, मकान ज़मीन के भीतर धँस जाते हैं । ऐसे प्रसंगों पर भी कोई कोई मनुष्य अचानक बच जाते हैं, सो किसके कारण ? प्रारब्ध के प्रभाव से, होनहार की कृपा से अथवा भवितव्यता के प्रताप से ! वहाँ न काल बचाने जाता है और न स्वभाव ही बचाता है । इससे भलीभाँति सिद्ध है कि नियति ही कारण है । सब कार्य उसी के प्रभाव से होते हैं । मनुष्य का प्रयत्न या स्वभाव आदि कुछ भी काम नहीं आता । अतः सब को छोड़ नियति मानना चाहिए ।
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[४] कर्मवादी - कर्मवादी एक मात्र कर्म को ही कारण मानता है । उसका कहना है कि काल और स्वभाव और नियति आदि कारण नहीं, कर्म से ही समस्त कार्यो की सिद्धि होती है । पहले जैसे कर्म जिसने किये हैं, वैसा ही फल उसे भुगतना पड़ता है । 'यथा कर्म तथा फलम्' यह उक्ति सत्य ही है । इस जगत् में पण्डित, मूर्ख, श्रीमन्त, दरिद्र, स्वरूपवान् कुरूपवान्, निरोगी, रोगी, क्रोधी, क्षमाशील वगैरह जो दिखाई देते हैं, वे सब अपने-अपने कर्मों के अनुसार ही हैं। जगत् में दिखाई देने वाले सभी मनुष्य एक सरीखे प्रतीत होते है, किन्तु उनमें से कोई पालकी में बैठता और कोई उस पालकी को उठाते हैं । कोई इच्छित भोजन पाता है और कोई रूखा