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* मिथ्यात्व *
खरबूजे तरबूजे आम नीबू जम्बू जोर, सिंघाड़े के सौरे से भूख को भगा दी है। कहते हैं नारायण करत हैं दूनी हान, कहने की एकादशी, द्वादशी की दादी है।
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'एकादशी माहात्म्य' के अनुसार एकादशी दिन व्रताचरण करने वाले को एकादश वस्तुओं का त्याग करना चाहिए: -
अनकन्दफलत्यागं, निद्रां शय्यां च मैथुनम् । व्यापारं विक्रयं क्षौरं, न स्नानं दन्तधावनम् ॥
अर्थात् – (१) अन्न (२) कन्द (३) फल ( ४ ) निद्रा (५) शय्या (६) मैथुन (७) व्यापार (c) विक्रय-लेनदेन ( 2 ) हजामत (१०) स्नान ( ११ ) दातौन, यह ग्यारह वस्तुएँ एकादशी के दिन त्यागनी चाहिए ।
इन वस्तुओं के त्याग का कष्ट सहन न करने की भावना से आजकल ढों प्रचलित हो गये हैं। कितनेक भोजन के कीड़े जैसे मनुष्य तो यहाँ तक कहते हैं कि नर का शरीर सो नारायण का शरीर है। ऐसे शरीर को तनिक भी कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए और इसलिए थोड़ा-बहुत अवश्य खाना चाहिए । जो अपने शरीर को दुःख देगा और पेट की आँतों को सुखाएगा वह जरूर नरक में जाएगा। ऐसे मनुष्यों को धार्मिक पुरुष पूछते हैं कि विश्वामित्र और पाराशर आदि ऋषियों ने साठ-साठ हजार वर्ष तप किया और लोहे की जंग का भक्षण करते रहे, अपने शरीर को काँटे की तरह कृश कर लिया । नव नाथों ने बारह बारह वर्ष तक काँटों पर खड़े रह कर तप किया सो क्या यह तपस्वी आपके मत से नरक गये होंगे १ कदापि नहीं । तप करने कारण कोई नरक में नहीं जाता। मगर जो शास्त्र के आधार पर बातचीत करे उसे तो उत्तर दिया जा सकता है, मगर गाल- पुराण siकने वालों को किस प्रकार समझाया जा सकता है ?
सच तो यह है कि जो लोग पुद्गलानन्दी हैं, विषय-रस में ही डूबे रहना चाहते हैं, उन्हें तप की बात कभी अच्छी नहीं लगती । ऐसे भोले