________________
५३२ ]
ॐ जैन-तत्व प्रकाश
की शिक्षा दी और जब वे अनाचार करने लगे तब उन्हें नरक आदि दुर्गतियों में डाल कर दुखित किया। इस प्रकार का अन्याय करने वाले को कैसे ईश्वर माना जाय ?
प्रतिपक्षी-भक्तों का रक्षण करने के लिए और दुष्टों का संहार करने के लिए ईश्वर का अवतार होता है ।
पूर्वपक्षी-दुष्ट लोग ईश्वर की इच्छा से उत्पन्न होते हैं या बिना इच्छा ही उत्पन्न हो जाते हैं ? अगर ईश्वर की इच्छा से ही उत्पन्न होते हैं तो फिर उन्हें दंड देना कहाँ तक उचित है ? किसी स्वामी ने अपने सेवक को आज्ञा देकर पहले दुष्ट कृत्य कराया और फिर दुष्ट कृत्य के लिए उसे दंड दिया तो क्या वह न्यायी कहलाएगा ? नहीं, वह स्वामी अन्यायी है। यदि दुष्ट लोग विना ईश्वर की इच्छा के आप ही उत्पन्न हुए कहते हो तो ईश्वर ने उन्हें उत्पन्न ही क्यों होने दिया ? क्या ईश्वर यह नहीं जानता था कि यह दृष्ट उत्पन्न होकर मेरे भक्तों को सतायेगा और इसका संहार करने के लिए मुझे अवतार धारण करना पड़ेगा ? इस प्रकार जानकर ईश्वर ने दुष्टों को क्यों उत्पन्न होने दिया ? उन्हें उत्पन्न होने से रोक क्यों नहीं दिया ?
प्रतिपक्षी-अवतार धारण करने से ईश्वर की महिमा होती है ।
पूर्वपक्षी-तो क्या अपनी महिमा बढ़ाने के लिए ईश्वर भक्तों का पालन और दुष्टों का संहार करता है ? अगर ऐसा हो तो ईश्वर रागी और द्वेषी कहलाएगा। राग-द्वेष दुःख का मूल है। ईश्वर अवतार धारण करके दुष्टों का संहार किये बिना अपनी महिमा नहीं बढ़ा सकता, तभी उसे अवतार लेने और अनेक प्रपंच रचकर भक्तों के पालन और दुष्टों के संहार की झंझट में पड़ना पड़ता है । जब सहज ही काम हो सकता था तो इतना कष्ट उठाने की क्या आवश्यकता थी ? अगर ईश्वर की इच्छा के अनुसार ही सब काम होता हो तो महिमाइच्छुक ईश्वर ने सारी सृष्टि के सीवों से अपनी महिमा ही क्यों न करवाई ?
प्रतिपक्षी-हमारे शुक्ल यजुर्वेद, यहदारण्यक में कहा है कि ब्रम