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* जैन-तत्त्व प्रकाश
दिनयवाही की मान्यता यह है कि समस्त गुणों में विनय गुण श्रेष्ठ है। सब के सामने नमकर-झुक कर रहना चाहिए। कोई कैसा ही क्यों न हो, फिर भी हमें को सरीखा समझना चाहिए। किसी के पक्ष की निन्दा नहीं करना चाहिए । काच, काच है और हीरा, हीरा है, मगर हम क्यों एक को निकृष्ट और दूसरे को उत्कृष्ट समझे। हम समान भाव से दोनों के साथ व्यवहार करें।
इस प्रकार क्रियावादियों के १८०, अक्रियावादी के ८४, अज्ञानवादी के ६७, और विनयवादी के ३२ भेद मिलकर पाखण्ड मतों की संख्या ३६३ हो जाती है। इन्हें या इनमें से किसी को मानना लौकिक गुरुगत मिथ्यात्व जानना।
(३) लौकिक धर्मगतमिथ्यात्व-लौकिक मिथ्यात्व का यह तीसरा भेद है। धर्म का नाम तो लेना किन्तु धर्म का कृत्य बिलकुल न करना, एकान्त अधर्म के काम करना और उन्हें धर्म समझ लेना लौकिक धर्मगत मिथ्यात्व है । जैसे-देवता के आगे बकरा आदि का बलिदान करना और फिर स्वर्ग पाने की अभिलाषा करना ! मगर इस प्रकार स्वर्ग नहीं मिलता ।
तीर्थस्थानों में नहाने से धर्म मानना भी धर्मगत मिथ्यात्व है। स्नान से पाप का नाश होता हो तो कच्छ-मच्छ आदि जलचर जीवों को सब से बड़ा धर्मात्मा और स्वर्ग मोक्ष का अधिकारी मानना पड़ेगा, क्योंकि वे सदेव पानी में रहते हैं। फिर बड़े-बड़े तपस्वियों ने वृथा तप क्यों किया ? बन्धुओ ! तीर्थस्थान के जल में और अपने घर के जल में कोई अन्तर नहीं । पापी जीवों को गंगा भी शुद्ध नहीं कर सकती । कहा भी है:
जायन्ते च म्रियन्ते च जलेष्वेव जलौकसः ।
नैव गच्छन्ति ते स्वर्गमविशुद्धमनोमलाः ॥ गंगा आदि जलाशयों के जलचर जीव जल में ही उत्पन्न होते हैं और जल में ही मरते हैं। मन का मैल दूर हुए विना उन्हें स्वर्ग नहीं मिलता, तो दूसरों की बात ही क्या है ?