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® मिथ्यात्व
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पूछना चाहिए कि तुम जो कहते हो सो ज्ञानपूर्वक कहते हो या अज्ञानपूर्वक कहते हो ? अगर तुम ज्ञानपूर्वक बोलते हो तो तुम्हारा मत झूठा है; क्योंकि तुम ज्ञानवादी होकर दूसरों को अज्ञानवादी बनाना चाहते हो और यदि अज्ञानपूर्वक अपने मत का समर्थन करते हो तो कौन विवेकशील पुरुष तुम्हारा कहना मानेगा ? फिर तुम्हारा यह भी कथन है कि-'हम अज्ञानवादी अज्ञानपूर्वक पाप करते हैं, इसलिए हमें पाप नहीं लगता।' मगर यह कहना ठीक नहीं है । अज्ञान से विष पीने वाले को विष चढ़ता है या नहीं ? अगर विष चढ़ता है तो अज्ञान से किये हुए पाप का फल भी भोगना पड़ेगा। भाइयो! सच बात तो यह है कि ज्ञानी की अपेक्षा अज्ञानी को अधिक पाप लगता है। ज्ञानी तो जानता है कि यह विष है, खाऊँगा तो प्राणों से हाथ धोने पड़ेंगे। ऐसा सोच कर वह विष से बचता रहता है। कदाचित् औषध के रूप में उपयोग करना पड़े तो उचित मात्रा में ही काम में लाता है और अनुपान की विधि के अनुसार ही काम में लाता है। इस प्रकार ज्ञानी विष का उपयोग करता हुआ भी मृत्यु से बचा रहता है । इसी तरह ज्ञानी पुरुष पाप को दुःखदाता जान कर पाप से बचा रहता है । कदाचित् कर्मयोग की प्रबलता से पाप करता भी है तो आवश्यकता के अनुसार ही करता है। अर्थात् जितना पाप किये बिना काम न चल सकता हो उतना ही करता है और वह भी डरते-डरते करता है। इससे उसका आत्मा अनर्थदण्ड से बच जाता है। किये हुए पाप के लिए ज्ञानी प्रायश्चित्त लेकर शुद्ध हो सकता है। मगर बेचारा अज्ञानी तो अपने माने हुए अज्ञान के सागर में ही हुबा रहेगा।
(२) विनयवादी-विनयवादी के ३२ भेद हैं । वे इस प्रकार हैं-(१) सूर्य का विनय (२) राजा का विनय (३) ज्ञानी का विनय (४) वृद्ध का विनय (५) माता का विनय (६) पिता का विनय (७) गुरु का विनय (5) धर्म का विनय । आठ प्रकार के इस विनय को मन से भला जाने, वचन से विनय का गुणग्राम करे, काय से नमस्कार करे और बहुमानपूर्वक भक्ति करे। इस प्रकार Ex४-३२ भेद होते हैं ।