________________
* मिथ्यात्व *
[ ५०७
सूखा जवार की रोटी का एक टुकड़ा भी नहीं पाता । कोई सूझता और कोई अंधा होता है। कोई स्पष्टवक्ता और कोई मूंगा. कोई राजा कोई रंक, कोई स्वामी कोई सेवक होता है। यह सब कर्मों की ही विचित्रता का फल है। कर्म के प्रताप से श्री आदिनाथ भगवान् को बारह महीनों तक अन्नजल नहीं मिला । महावीर स्वामी के कानों में खोले ठोंके गये, पैरों पर खीर रांधी गई और गुवाल ने मारा । इस प्रकार साढ़े बारह वर्ष और एक पक्ष तक उन्हें घोर उपसर्ग भुगतने पड़े । सगर चक्रवर्ती के साठ हजार पुत्र एक साथ मारे गये । सनत्कुमार चक्रवर्ती के शरीर में ७०० वर्षों तक कोढ़ की बीमारी रही । राम और लक्ष्मण जैसे पराक्रमी पुरुषों को बनवास करना पड़ा। सीताजी को कलंक लगा और लंका भस्म हो गई । कृष्ण वासुदेव के जन्म के समय कोई आनन्द-मंगल के गीत गाने वाला और मरते समय कोई
आश्वासन देने वाला नहीं मिला। ऐसे-ऐसे उत्तम पुरुषों को ऐसी-ऐसी विडंबनाएँ भोगनी पड़ी तो दूसरों की क्या चलाई है ? कर्म ही जीव को एकेन्द्रिय अवस्था तथा नरक आदि नीच गतियों में और स्वर्ग- मनुष्य आदि की उच्च गतियों में ले जाता है। अधिक क्या कहा जाय, कर्म के दूर होने पर ही मोक्ष प्राप्त होता है । इसलिए कर्मवादी कहता है कि कर्म महान् शक्तिशाली है और यह सारा विश्व कर्म-चक्र के सहारे ही चल रहा है।
कर्मवाद की जगह किसी-किसी ने चौथे स्थान पर ईश्वरवाद का निरूपण किया है । ईश्वरवादी का कथन है कि विश्व में जो कुछ होता है, ईश्वर का ही किया होता है और जगत् का कर्ता ईश्वर ही है । ईश्वर की आज्ञा के विना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता । सुख-दुःख, स्वर्ग-नरक, देने वाला और समस्त कार्यों का कर्ता एक मात्र ईश्वर ही है ।
[५] उद्यमवादी-उद्यम, पराक्रम, पुरुषार्थ आदि पर्यायवाचक शब्द हैं । उद्यमवादी का कथन है कि उद्योग से ही समस्त कार्यो की सिद्धि होती है। काल, स्वभाव, नियति और कर्म से कुछ भी नहीं होता । उसका कथन है कि कर्म जड़ है, निर्बल है । जड़ कर्म क्या कर सकता है ? देखो, पुरुष की ७२ कलाएँ और स्त्री की ६४ कलाएँ उद्यम करने से ही आती हैं । घोड़ा, तोता, बन्दर, कुत्ता, हाथी आदि पशु होने पर भी उद्योग की बदौलत अनेक.