________________
५१० ]
* जैन-तत्त्व प्रकाश
प्रकार जाना जा सकता है ? ज्ञान के अभाव में क्रिया अंधी है । शास्त्र में
अन्नाणी किं काही, किंवा नाही छेयपावकं ।
-श्रीदशवकालिक सूत्र । अर्थात् बेचारा अज्ञानी क्या कर सकता है ? वह भले-बुरे को कैसे समझ सकता है ? कब, कौन-सी क्रिया करने से, किस फल की प्राप्ति होती है, यह बात ज्ञान से ही जानी जाती है। ज्ञानहीन क्रिया अंधी है । वास्तव में दोनों के संयोग से ही कार्य की सिद्धि होती है ।
उदाहरण-कुछ आदमी मुसाफिरी कर रहे थे। वे किसी जगह, रात के समय जंगल में रहे । सुबह होने पर सब उठ कर अपने-अपने रास्ते लगे किन्तु एक अंधा और लँगड़ा वहीं पड़े रहे । इतने में उस जंगल में दावानल सुलग उठा। उसकी गर्मी से दोनों घबराने लगे। मरने के भय से अंधा इधर-उधर दौड़ने लगा। उसे दौड़ता देख लँगड़े ने आवाज देकर अपने . पास बुलाया और कहा-देखो भाई, अगर अपन दोनों अलग-अलग रहेंगे तो दोनों दावानल में जलकर भस्म हो जाएँगे । तू चल सकता है पर देख नहीं सकता और मैं देख सकता हूँ किन्तु चल नहीं सकता। दावानल से बचने के लिए देखना और चलना-दोनों आवश्यक हैं । इस लिए हम दोनों मिलकर बचें तो बच सकते हैं । एक ही उपाय है-तू मुझे अपने कंधे पर बिठा ले । मैं रास्ता दिखलाऊँगा और तू चलना । इस उपाय से दोनों की रक्षा हो जायगी और गाँव में पहुँच जाएँगे। अंधे को यह बात पंसद आई। दोनों मिलकर सकुशल जंगल से बाहर जा पहुँचे ।
इस उदाहरण का उपनय यह है कि संसार रूपी जंगल में मृत्यु रूपी दावानल सुलग रहा है। उससे क्रियाहीन ज्ञानी, जो लँगड़े के समान है, नहीं बच सकता । और ज्ञानहीन क्रियावान् भी नहीं बच सकता, क्योंकि वह अंधे के समान है। अतएव जो ज्ञानपूर्वक क्रिया करता है वही मृत्यु रूपी दावानल से बच सकता है। अकेले ज्ञान से और अकेली क्रिया से सिद्धि प्रारम्बहीं होती । कहा भी है: