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* सूत्र धर्म *
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करता है, उसी प्रकार विवेकः पुरुष को बार-सार ग्रहण कर लेना चाहिए ।
अनकनंरायोच्छेदि. परोक्षायस्य दर्शकम् ।
सर्वस्य लोचनं शास्त्रं, यस्य नास्त्यन्य एव सः। शास्त्रज्ञान अनेक शंकाओं का निराकरण करने वाला, मोक्षमार्गप्रदशक, और सब जीवों के लिए मंत्र रूप है । जिभ शास्त्रज्ञान रूपी नेत्र प्राप्त नहीं है, वह अंधे के समान है। गाथा-जिणवयणे अणुरता, जिणबयणं जे कति भावेणं ।
अमला अकिनिहा, हंति परित्तनसाग । अर्थ-जो जीव संक्लिप्ट परिण!.से रहित, निर्मल स्वभाव वाले होते हैं, वे श्रीजिनेश्वरप्रशन वचन में नुरक्त बनते हैं। वे जिनवचन की आराधना करते हैं और मनार का पार पा लेते है।
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