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रक्त-मांस से व्यास अपवित्र स्थान में अनेक प्रकार के भोजन बनाकर उन देवों को भोग लगाते हैं और आप भी खाते हैं। इस प्रकार वे सम्यक्त्व से और धर्म से भ्रष्ट होते हैं । ऐसे लोगों को क्या कहा जाय १ भोले भाइयो ! जरा विचार करो कि अगर देव की मनौती मनाने से ही पुत्र की प्राप्ति होती हो तो स्त्री को पति-संबंध की क्या धावश्यकता थी ? ऐसी स्थिति में विधवा, वन्ध्या और कुमारिकाएँ- सभी पुत्रवती क्यों न बन जातीं ? अगर देवता में इच्छा पूर्ण करने की शक्ति होती तो वे तुम्हारी आशा क्यों करते ? तुमसे भेंट-पूजा क्यों चाहते है ? पहले अपनी इच्छा आप पूरी क्यों नहीं कर लेते ? जो दमड़ी- दमड़ी की वस्तु के लिए तुम्हारा मुँह ताकते बैठे हैं, तुमसे वस्तु पाकर ही तृप्त होते हैं, वे तुम्हें पुत्र या धन किस प्रकार दे सकते हैं ? इस प्रकार अपनी बुद्धि को ठिकाने लाकर इस लौकिक देवगत मिथ्यात्व को त्यागो और महादुर्लभ सम्यक्त्वरत्न को सुरक्षित रखो ।
* जन-तश्व प्रकाश *
गुरुगत लौकिक मिथ्यात्व - गुरु (साधु) का नाम धराया पर गुरु के लक्षण - गुण- जिन्होंने प्राप्त नहीं किये, ऐसे जोगी, संन्यासी, फकीर, बाबा, साई पादरी आदि अनेक नामों को धारण करने वाले, जो हिंसा करते हैं, झूठ बोलते हैं, रात्रिभोजन करते हैं, गांजा, भंग, अफीम, चरस, तमाखू आदि पीने की धुन में मस्त रहते हैं; तिलक, माला, अतर, वस्त्र, आभूषण आदि से शरीर का शृङ्गार करते हैं, रंग-विरंगे वस्त्र धारण करते हैं, जटा बढ़ाते हैं, भस्म लगाते हैं, नागे रहते हैं, वाहन पर बैठते हैं; यहाँ तक कि मांस और मद्य का भी सेवन करते हैं, अनेक प्रकार का पाखण्ड करके पेट भराई
* पाखण्डी गुरु के विषय में कहा है :
धर्मध्वजी सदा लुब्धः छाद्मिको लोकदम्भकः । वैडालव्रतिको ज्ञेयो हिंस्रः सर्वाभिसंघकः ॥ श्रोप्टिष्कृतिकः स्वार्थसाधनतत्परः। शठो मिथ्याविनीतश्च बकवृत्तिचरो द्विजः ॥
मनुस्मृति, अ. ४
अर्थात् धर्म के नाम पर लोगों को उगने वाला, सदा लोभी, कपटी, अपनी बड़ाई हाँकने वाला, हिंसक वैर रखने वाला, थोड़ा गुणों वाला होकर बहुत हानि करने वाला, स्वार्थी अपने पक्ष को मिथ्या समझकर भी न छोड़ने वाला, झूठी शपथ खाने वाला, ऊपर से उमेश और भीतर मैला, बगुला सरीखी वृत्ति वाला द्विज पाखंडी है ।