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* मिथ्यात्व *
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करते हैं, ऐसे गुरु कहलाने वालों को मानना पूजना गुरुगत लौकिक मिध्यात्व है ।
शास्त्र में ३६३ प्रकार के पाखण्ड मत बतलाये गये हैं। उनका स्वरूप समझ लेने से कुगुरुओं का स्वरूप भलीभाँति समझ में था जाएगा । ३६३ पाखण्डमत
एकान्तवाद के संस्थापक प्रधान रूप से पाँच प्रकार के होते हैं(१) कालवादी (२) स्वभाववादी (३) नियति ( होनहार - भवितव्यता) वादी, (४) कर्मवादी और (५) उद्यमवादी । इन पाँचों की मान्यताएँ इस प्रकार हैं:
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[१] कालवादी संसार के समस्त पदार्थ काल के अधीन हैं, अर्थात् सब पदार्थों पर काल का ही आधिपत्य है । काल ही सब का कर्त्ता-मर्चाहर्त्ता है । स्त्री के गर्भाधान के संबंध में विचार करें तो योग्य उम्र के स्त्रीपुरुष के संयोग से स्त्री के गर्भाशय में गर्भ स्थापित होता है । स्त्री जब वृद्ध हो जाती है तो पुरुष का संयोग होन पर गर्भधारण की क्रिया बंद हो जाती है। गर्भ में आने वाला जीव गम में नियत काल तक रहता है और फिर समय पर ही उसका प्रसव होता है। वह बालक जब योग्य उम्र का होगा तभी चल फिर सकेगा, बोल सकेगा, और समझ सकेगा । योग्य समय पर विद्याभ्यास के योग्य होगा। जियत समय पर ही इन्द्रियों के विषयों की विशेष जानकारी होगी। वृद्ध अवस्था आने पर बाल सफेद हो जाएँगे दाँत गिर जाएँगे, शक्ति मंद हो जायगी । इस प्रकार समय पूरा होने पर मृत्यु के अधीन होना पड़ेगा । इस प्रकार मनुष्यों पर जैसे काल की सत्ता है, उसी प्रकार स्थावर जीवों पर भी है। काल परिपक्व होने पर ही वनस्पति के अंकुर फूटते हैं, पत्ते आते हैं, फल-फूल लगते हैं, है । समय पकने पर वनस्पति सड़ जाती है, गल जाती है और सूख जाती है । इस प्रकार यह सम्पूर्ण विश्व काल के सहारे ही चल रहा है।
चीज और रस पड़ता
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