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® जैन-तत्त्व प्रकाश
वैष्णव धर्म के शास्त्रों में इसे अभक्ष्य अर्थात् खाने के अयोग्य कहा है । यह स्थावर तियेंच के २२ भेद हैं।
(६) जंगमकाय (त्रसजीव)-त्रस जीवों की उत्पत्ति के आठ स्थान हैं। उन स्थानों के कारण त्रस जीवों के भी आठ भेद हैं। वे इस प्रकार:(१) अण्डज-अंडे से उत्पन्न होने वाले पक्षी आदि । (२) पोतज-जनमते ही चलने भागने वाले हाथी आदि प्राणी। (३) जरायुज–जर (जेर) से उत्पन्न होने वाले गौ, मधुष्य आदि प्राणी । (४) रसज-रस में उत्पन्न होने वाले कीड़े। (५) संस्वेदज-पसीने में उत्पन्न होने वाले जू आदि प्राणी। (६) सम्भूछिम-बिना माता पिता के संयोग के, इधर-उधर के पुद्गलों के मिलने से उत्पन्न हो जाने वाले मक्खी आदि प्राणी। (७) उद्भिज-जमीन फोड़ कर निकलने वाले पतंगे आदि । (८) औपयातिकउपयात शय्या में तथा नारकीय बिलों में उत्पन्न होने वाले देव और नारकी।
सजीवों का लक्षण इस प्रकार है-(१) अभिक्कतं सामने आना (२) पंडिकंतं-पीछे लौटना (३) संकुचियं—शरीर को सिकोड़ना (४) पसारियं-शरीर को फैलाना (५) रुयं-बोलना या रोना, (६) भंतंभयभीत होना (७) तसियं-त्रास पाना (८) पलाइयं-भागना (8) श्रागइगइ-आवागमन करना। इन लक्षणों से त्रसजीव की पहचान होती है।
बस तिर्यंच के २६ भेद इस प्रकार हैं:-(१) द्वीन्द्रिय-शंख, सीप, कौड़ी, गिंडोला, लट, अलसिया, जलोक, पोरे, कमि आदि स्पर्शन और रसना इन दो इन्द्रियों के धारक जीव द्वीन्द्रिय कहलाते हैं। यह अपर्याप्त
और पर्याप्त के भेद से दो प्रकार के हैं। (२) त्रीन्द्रिय-जु, लीख, कीड़ी, खटमल, कुंथवा, धनेरा, इल्ली, उदेई (दीमक), मकोड़े, गधइये आदि काया, मुख और नाक-इन तीन इन्द्रियों के धारक जीव त्रीन्द्रिय कहलाते हैं । यह भी दो प्रकार के हैं—अपर्याप्त और पर्याप्त । (३) चतुरिन्द्रिय-डाँस, मच्छर, मक्खी, टिड्डी, पतंग, भ्रमर, बिच्छू, केंकड़ा, मकड़ी, वधई, कंसारी आदि कान, मुख, नाक और आँख, इन चार इन्द्रियों के धारक जीव