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® जैन-तत्त्व प्रकाश
चार भेद हैं--(१) : नितेष (२) स्थापनानिक्षेप (३) द्रव्यनिक्षेप और (४) भावनिक्षेप।
(१) मानिने बोल्पनार चलाने के लिए, गुण-अवगुण की अपेक्षा न रखते हुए किसी वस्तु का कुछ भी नाम रख लेना नामनिक्षेप कहलाता है। नाम तीन प्रकार के होते हैं-[१] यथार्थ नाम-अर्थात् जो नाम वस्तु के गुरु के अनुसार हो। जैसे उज्ज्वल होने के कारण हंस, चेतनायुक्त होने के कारण चेतन, सदैव जीवित रहने के कारण जीव, प्राणों का धारक होने के कारण प्राणी नाम रखना । (२) अयथार्थ नाम-जो नाम वस्तु के गुण के अनुसार न हो, सिर्फ व्यवहार के लिए रख लिया गया हो; जैसे किसी व्यक्ति का नाम मोतीलाल, किसी का गजराज आदि नाम होता है । उस व्यक्ति में नाम के अनुसार गुण नहीं होते । (३) अर्थशून्य--जिस नाम का कोई अथे ही न होता हो; जैसे-डित्थ, डवित्थ, खुन्नी श्रादि ।
यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि वस्तु में चाहे नाम के अनुसार गुण हो तो भी नामनिक्षेप उस गुण की अपेक्षा नहीं करता ।
(२) स्थापनानिक्षेप-किसी मूल वस्तु का, किसी प्रतिकृति, मूर्ति अथवा चित्र में आरोप करना स्थापना निक्षेप है। स्थापना निक्षेप के ४० भेद हैं-(१) कट्ठकम्मे (काष्ठकर्म)---लकड़ी की, (२) चित्तकम्मे (चित्रकर्म)-चित्र की (३) पोतकम्भे (पोतक)-चीड़ की (४) लेप्पकम्मे (लेप्यकर्म)-खड़िया आदि के लेपन की (५) मंठिम (ग्रथित)-डोरा आदि के गूंथने की (६) पुरिम-भरत-कसीदे की (७) वेढिम–कोरनी करके बनाई हुई (E) संघातिमकिसी वस्तु का मंयोग करके बनाई हुई (8) अक्खे (अक्ष).- कौड़ी याअकस्मात् किसी वस्तु के पड़ने से बना हुआ आकार (१०) जमे-चावल आदि जमा कर बनाई हुई; इन दस प्रकारों से बनाई हुई मनुष्य, पशु, पक्षी, देव तथा द्वीप समुद्र, मकान, बगीचा आदि की आकृति।
यह दस प्रकार की स्थापना दो-दो प्रकार की है-(१) एकं वा (२) बहुं वा अर्थात् एक प्राकृति वनाना और अनेक प्राकृतियाँ बनाना। इस अपेक्षा स्थापना के २० भेद हो जाते हैं। स्थापना के इन बीस भेदों के भी