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* धर्म प्राप्ति *
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(३) श्रीन्द्रिय की स्पर्शनेन्द्रिय का विषय १६०० धनुष का रसेन्द्रिय का विषय १२८ धनुष का और प्राणेन्द्रिय का १०० धनुष का है।
(४) चतुरिन्द्रिय की स्पर्शनेन्द्रिय का विषय ३२०० धनुष का, रसेन्द्रिय का विषय २५६ धनुष का, घ्राणेन्द्रिय का २०० धनुष का और चक्षुरिन्द्रिय का विषय २६५४ धनुष का है ।
(५) असंज्ञी पंचेन्द्रिय की स्पर्शनेन्द्रिय का विषय ६४०० धनुप का, रसेन्द्रिय का ५१२ धनुष का, घ्राणेन्द्रिय का ४०० धनुष का, चक्षुरिन्द्रिय का ५६०६ धनुष का और श्रोत्रेन्द्रिय का विषय ८०० धनुष का है । संज्ञी पंचेन्द्रिय की स्पर्शन, रसना और प्राण इन्द्रियों का विषय - योजन का, चचुरिन्द्रिय का एक लाख योजन झारा और श्रोत्रेन्द्रिय का विषय १२ योजन का है। यह सब उत्कृष्ट विषय जानना चाहिए ।
ऊपर इन्द्रियों के जो भेद प्रभेद बतलाये हैं, उन सबसे होने वाला प्रत्यक्ष उन्हीं के नाम से कहलाता है ।
(२) नोइन्द्रियप्रत्यक्ष —– इसके दो भेद हैं- (१) देश से और (२) सर्व से। एक देश नोइन्द्रियप्रत्यक्ष के चार भेद हैं- (१) मतिज्ञान (२) श्रुतज्ञान (३) अवधिज्ञान और ( ४ ) मन:पर्ययज्ञान | सर्व नोइन्द्रियप्रत्यक्ष एक मात्र केवलज्ञान है । पाँचों ज्ञानों का विस्तार से स्वरूप इस प्रकार है:
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(१) मतिज्ञान - पाँच इन्द्रियों से तथा मन से जो ज्ञान उत्पन्न होता है वह मतिज्ञान कहलाता है । मतिज्ञान के भेद हैं- [१] अवग्रह ( दर्शन के अनन्तर होने वाला अव्यक्त ज्ञान, अर्थात् जिस ज्ञान में नाम यदि विशेष की कल्पना न हो ऐसा श्रवान्तर सामान्य को जानने वाला ज्ञान) । (२) ईहा (अवग्रह के द्वारा जाने हुए सामान्य विषय का विशेष रूप से निश्चय करने के लिए होने वाली विचारणा) । (३) श्रथाय ( ईहा द्वारा ग्रहण किये हुए विषय में विशेष का निश्चय हो (are द्वारा ग्रहण किये विषय का दृढ़ ज्ञान होना, तक टिका रहे और फिर लुप्त होकर भी कालान्तर में निमित्त पाकर स्मरण
जाना) । ( ४ ) धारणा
जिससे वह कुछ समय