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* सूत्र धर्म *
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(५) केवलज्ञान-सकल नोइन्द्रिय , एक ही प्रकार का है । उसे केवलज्ञान भी कहते हैं। यह ज्ञान मनुष्य, संज्ञी, कर्मभूमिज, संख्यात वर्ष की आयु वाले, पर्याप्त, सम्यग्दृष्टि, संयत, अप्रमादी, अवेदी, अकषायी, चार घातिकर्मविनाशक, १३वे गुणस्थानवी वीतराग मुनियों को प्राप्त होता है। केवलज्ञान में सर्व द्रव्य, सर्व क्षेत्र, सर्व काल और सर्व भाव हस्तामलकवत् प्रकाशित होते हैं। यह ज्ञान अप्रतिपाती है-एक बार उत्पन्न होकर फिर कभी नष्ट नहीं होता। केवलज्ञान की उत्पत्ति के पश्चात् जघन्य अन्तमुहर्च में और उत्कृष्ट ८ वर्ष कम करोड़ पूर्व में मोक्ष की प्राप्ति अवश्य हो जाती है।
२-अनुमान प्रमाण
साधन से साध्य का ज्ञान होना अनुमान प्रमाण कहलाता है । उसके तीन भेद हैं-१ पुव्वं, २ सेसव्वं, ३ दिट्ठीसाम ।
१ पुव्वं जैसे किसी का पुत्र बाल्यावस्था में परदेश गया और जवान होकर लौटा। तब उसकी माता उसकी देहाकृति, वर्ण, तिल, मसा आदि पहले के समान जानकर पहचान लेती है।
२ सेसव्वं-के पाँच भेद हैं-कज्जेणं, कारणोणं, गुणेणं, अवयवेणं श्रासरणेणं । कार्य से कारण का अनुमान करना, जैसे केकारव से मोर का, चिंघाड़ से हाथी का, हिनहिनाहट से घोड़े का, यह कज्जेणं अनुमान कहलाता है । कारण से कार्य का अनुमान करना; जैसे विशेष प्रकार के बादलों को देखकर वर्षा का अनुमान करना कारणेणं अनुमान है । वस्र का कारण तंतु हैं पर तंतु का कारण वस्त्र नहीं, रोटी का कारण आटा है पर आटे का कारण रोटी नहीं, घड़े का कारण मिट्टी है पर मिट्टी का कारण घड़ा नहीं है। इन कारणों से इनके कार्यों का अनुमान किया जाता है। गुण से गुणी का अनुमान करना गुणेणं अनुमान कहलाता है। जैसे नमक में खास तरह का खारापन और फूल में गंध है । अवयवों से अवयवी को पहचानना अवयवेणं अनुमान