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* जैन-तत्त्व प्रकाश
गधे के सींग जैसे । गधे के सींग कैसे १ घोड़े के सींग जैसे । इस प्रकार उपमा प्रमाण के चार भेद हैं ।
नौ तत्त्वों पर चार प्रमाण
(१) जीव तव - प्रत्यक्ष प्रमाण से चेतना लक्षण वाला; अनुमान प्रमाण से बालक, जवान, वृद्ध, बस और स्थावर हे शास्त्र में कहे लक्षण वाला, उपमान प्रमाण से आकाश की भाँति रूपी, धर्मास्तिकाय की तरह नादि - अनन्त तथा तिल में तेल की तरह, दूध में वी की तरह और अग्नि में तेज की तरह समस्त शरीर में व्याप्त होकर रहा हुआ । श्रागम प्रमाण से निम्नलिखित गाथा में कहे अनुसार
कम्मा या वो ।
कम्मकता श्रयं जीवो, रूवी णिच्चोऽणाई, एवं जीवस्स लक्खणं ॥
अर्थात् — जीव शुभाशुभ कर्मों का कर्त्ता और विनाशक है । वह रूपी, अनन्त और अनादि है इत्यादि शास्त्रीय प्रमाणों से सिद्ध स्वरूप वाला है ।
(२) जीव तत्र - प्रत्यक्ष प्रमाण से जड़ता लक्षण वाला, जीव से विपरीत स्वभाव वाला, वर्ण आदि गुण- पर्याय वाला, मिलने और बिछुड़ने के स्वभाव वाला है (२) अनुमान प्रमाण से नवीन प्राचीन बने, पर्याय बदले, जीव की गति, स्थिति अवगाहन आदि में सहायक हो - इत्यादि कार्यों से जिसका अनुमान किया जाय वह अजीव तत्त्व है। जैसे—जीव को सर्कप देखकर अनुमान से जानना कि यह धर्मास्तिकाय के निमित्त से सकंप हो रहा है, कंप देखकर जानना कि श्रधर्मास्तिकाय के निर्मित से अकंप हो रहा है; दूध से पूर्ण भरे हुए प्याले में शक्कर का समावेश होता देखकर जानना कि अवकाश देना आकाश का स्वभाव है । उपमान प्रमाण से-जैसे इन्द्रधनुष और संध्या का दृश्य थोड़ी ही देर में बदल जाता है, उसी प्रकार पर्याय बदल जाते हैं। जैसे पीपल का पान, कुंजर का कान