________________
* सूत्र धर्म
[ ४५६
दो-दो भेद हैं- ( १ ) तदाकार स्थापना और (२) श्राकार स्थापना | मूल वस्तु की जैसी आकृति हो, लम्बाई, चौड़ाई, मोटाई आदि हो, उसी के अनुसार उसकी प्रतिकृति की लम्बाई-चौड़ाई श्राकृति कादि हो तो वह तदाकार स्थापना है । जैसे आजकल फोटो उतारा जाता है या पुतला आदि बनाया जाता है, जिसे देखते ही उस मूल वस्तु का यह भाम होता है । ऐसी स्थापना सद्भावस्थापना भी कहलाती है ।
दूसरी अदाकार स्थापना वह है जिसमें मूल वस्तु की चाकृति ज्यों की त्यों न हो । जैसे शतरंज में राजा, वजीर, हाथी, घोड़ा आदि की स्थापना की जाती है । उक्त बीस प्रकार की स्थापना के यह दो-दो भेद करने से स्थापनानिक्षेप के चालीस भेद हो जाते हैं ।
(३) द्रव्यनिक्षेप – किसी पदार्थ की भूतकालीन प्रथवा भविष्यत् - कालीन पर्याय का वर्त्तमानकाल में व्यवहार करना, अर्थात् जो वस्तु पहले जैसी थी वर्त्तमान में नहीं हैं फिर भी उसे वर्तमान में देसी कहना अथवा भविष्य में जो वस्तु जैसी होने वाली हैं उसे वर्तमान में देसी कहना द्रव्यनिक्षेप है ।
द्रव्यनिक्षेप दो प्रकार का हैं - आगम द्रव्यनिक्षेप और नोश्रागमद्रव्यनिक्षेप | शास्त्र को पढ़ने वाला शास्त्र पढ़ा हो किन्तु जब उसमें उपयोग न लगा रहा हो, तब उसे आगम द्रव्य निक्षेप कहते हैं। नोश्रागमद्रव्यनिक्षेप के तीन भेद हैं: - (१) ज्ञायकशरीर (२) भव्यशरीर ( ३ ) तद्व्यतिरिक्त | जैसे कोई श्रावक आवश्यक सूत्र का ज्ञाता था। वह आयु पूर्ण करके मर गया । उसका जीव-रहित शरीर पड़ा है। वह शरीर श्रागम द्रव्यनिक्षेप से
वश्यक कहलाता है । दृष्टांत जैसे जिसमें घी भरा जाता था, उस खाली घड़े को देखकर कहना - यह घी का घड़ा है। भव्यशरीर द्रव्यावश्यक - किसी श्रावक के घर पुत्र उत्पन्न हुआ। इस पुत्र के विषय में कहना कि - यह आवश्यक है। जैसे- कोई नवीन घड़ा घी भरने के उद्देश्य से बनाया गया है— उसमें आगे वी भरा जायगा, अतः वर्त्तमान में उसे घी का घड़ा कहना ।