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* जन-तत्व प्रकाश *
यह सातों कारण अकेले-अकेले हों तो अनाज उत्पन्न हो ही नहीं सकता। अतः सात उत्तर गलन सावित होते हैं। किन्तु सातों कारण यदि एकत्र हो तो अनाज की उत्पत्ति होती है। अतः एकान्तवाद सदा मिथ्या ठहरता है। प्रत्येक कार्य में नाना कारणों की आवश्यकता रहती है। उन 'नाना' का समन्वय करने से ही सत्य प्रकट होता है। अतएव नय की अपेक्षा का ध्यान रखकर निष्पक्ष बुद्धि से वस्तुतत्व को कहना और समझना चाहिए।
उक्त सातों नयों में से नैगम, संग्रह और व्यवहार नय द्रव्यार्थिक नय हैं और ऋगुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ तथा एवंभूत नय पर्यायार्थिक नय कहलाते हैं । द्रव्यार्थिक नय द्रव्य को विषय करते है और पर्यायार्थिक नय पर्याय को।
___ इन सात नयों का अर्थनय और शब्दनय के रूप में भी विभाग होता है। प्रारंभ के चार नय अर्थनय कहलाते हैं और शब्द समभिरूढ़ तथा एवंभूत यह तीन नय शब्दनय कहलाते हैं। जो नय वस्तु को विषय करते हैं वे अर्थनय हैं और जो शब्द को विषय करते हैं वे शब्दनय कहे जाते हैं।
नौ तत्त्वों पर सात नय
जीवतत्व नैगम नय पर्याप्ति, प्राण आदि के समूह वाले एवं प्रयोगसा पुद्गलों के संयोग से बने हुए दिखाई देने वाले शरीर को ही जीव मानता है। यथा-बेल, गाय, मनुष्य आदि वस्तुओं में गमनागमन आदि क्रिया देखी जाती है, उन्हें जगत् कहता है कि यह 'जीव' है। नैगम नय वाला एक अंश को पूर्ण वस्तु मानता है और कारण को कार्य स्वीकार करता है । संग्रहनय असंख्यात प्रदेशात्मक अवगाहना वाली वस्तु को जीव कहता है । व्यवहार नय इन्द्रियों की सत्ता, द्रव्य योग और द्रव्य लेश्या को जीव कहता है, क्यों कि जीव के चले जाने के पश्चात् इन्द्रिय की सत्ता नहीं