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* অল-র মহা ৪
देवों के १६८ भेद
१० भवनपति देव, १५ परमधामी देव, १६ वाणव्यन्तर देव, १० जम्भक देव, १० ज्योतिष्क देव, ३ किल्विषी देव, १२ कल्पोपपत्र वैमानिक देव, 8 ग्रैवेयक-देव और ५ अनुत्तरविमान के देव, यह सब मिलकर ६६ प्रकार के देव हैं । इनके पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से दो-दो भेद होते हैं। सब ६६४२=१६८ देवों के भेद हुए ।*
नारकों के १४, तिर्यन्चों के ४८, मनुष्यों के ३०३ और देवों के १९८ भेद मिल कर ५६३ भेद जीवतत्त्व के हुए । यों देखा जाय तो जीव के उत्कृष्ट भेद अनन्त हैं, किन्तु मध्यम रूप से ५६३ भेद कहे हैं। यह जीव तत्व ज्ञेय है।
२-अजीव तत्त्व
अजीव तत्व का स्वरूप-जीव का प्रतिपक्षी तत्त्व अजीव है। वह जड़ अर्थात् चेतना से हीन, अकर्ता, अभोक्ता, अनादि, अनन्त सदा शाश्वत है। वह सदा काल निर्जीव रहने से अजीव कहलाता है।
अजीव तत्त्व के भेद-अजीव तत्त्व मूलतः दो प्रकार का है-(१) अरूपी और (२) रूपी । अरूपी के चार भेद हैं-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय और काल । रूपी एक मात्र आकाशास्तिकाय है। वर्ण, रस, गंध और स्पर्श, यह रूपी पुद्गल के गुण हैं । यह गुण पुद्गल से कभी अलग नहीं होते। एक परमाणु में एक वर्ण, एक गंध, एक रस
और दो स्पर्श पाये जाते हैं। द्विप्रदेशी स्कंध (द्वयणुक) में दो वर्ण, दो रस, दो गंध और चार स्पर्श होते हैं। जब परमाणुओं का संयोग होता है और
* समस्त देवों के विशेष विवरण के लिए देखिए प्रथम खण्ड का, द्वितीय प्रकरण।