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* धर्म प्राप्ति *
लकड़ी तोड़ना आदि । इसका दूसरा अर्थ यह भी है कि अपने शरीर का अथवा दूसरे मनुष्य आदि जीव का वध या बंधन करना जीवस्हस्तिकी क्रिया है और वस्त्र, आभूषण आदि को तोड़ना-फोड़ना, फाड़ना आदि अजीवस्वहस्तिकी क्रिया है।
(१) नैशस्त्रिकी (नेसत्थिया) क्रिया-किसी वस्तु को बिना यतना के पटक देने से लगने वाली क्रिया । इस के दो भेद हैं-(१) जीवनेसत्थिया अर्थात् जॅ, लीख, खटमल आदि छोटे-छोटे जन्तुओं को तथा बड़े जीव को ऊपर गिरा देना, कष्ट पहुँचाना । (२) अजीवनेसत्थिया अर्थात् वस्त्र, आदि निर्जीव वस्तुओं को बिना यतना के ऊपर से फेंक देना ।
(१७) आज्ञापनिका (आणवणिया)-उसके स्वामी की आज्ञा के बिना किसी वस्तु को ग्रहण करना अथवा आज्ञा देकर किसी वस्तु को मँगवाना । इसके भी दो भेद हैं:-(१) जीवाणवणिया अर्थात् सजीव वस्तुओं को मँगवाना और (२) अजीवाणवणिया-निर्जीव वस्तुओं को मँगवाना। किसी-किसी के मत से इस क्रिया का अर्थ है-नौकर या मजदूर वगैरह को आज्ञा देकर स्वामी जो कार्य करवाता है, उसकी जो क्रिया स्वामी को लगती है वह प्राणवणिया क्रिया कहलाती है।
(१८) वैदारणिका (वेयारणिया) क्रिया-किसी वस्तु का विदारण करने से अर्थात् छेदन-भेदन आदि करने से लगने वाली क्रिया । इसके भी दो भेद हैं-(१) जीवविदारणिया अर्थात् शाक, भाजी, फल, फूल, अनाज, मनुष्य, पशु पक्षी वगैरह सजीव वस्तुओं के टुकड़े करने से लगने वाली क्रिया (२) अजीवविदारणिया अर्थात् वस्त्र, धातु, मकान आदि निर्जीव पदार्थों को तोड़ने-फोड़ने से लगने वाली क्रिया ।
इस क्रिया का दूसरा अर्थ ऐसा भी किया जाता है कि हृदय का भेदन करने वाली कथा करने से लगने वाली क्रिया वियारणिया क्रिया कहलाती है। इस अर्थ में भी इसके दो भेद होते हैं-(१) स्त्रियों तथा पशुओं के हावभाव करके, स्वांग बना कर हर्ष या शोक उपजाने वाली