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* सूत्र धर्म *
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[१] सम्यक्त्व [२] विरति-व्रत-प्रत्याख्यान [३] अप्रमत्तता अर्थात् प्रमाद का त्याग [४] कषाय का त्याग [५] अयोगता-योग का त्याग या स्थिर करना [६] जीवों की दया पालना [७] सत्य वचन बोलना [-] अदत्तादान का त्याग करना [६] ब्रह्मचर्य पालना [१०] ममता का त्याग करना (११-१५) श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रसना और स्पर्शन इन्द्रियों को वश में करना (१६-१८) मन, वचन, काय को वश करना [१६] भाएडोपकरणों को यतनापूर्वक ३ठाना और रचना [२०] सुई कुसग न करना अर्थात् सुई और तिनका जैसी छोटी-सी वस्तु भी यतना से लेना और रखना। इन वीस कारणों से संवर होता है।
विशेष रूप से संवर के १५७] भेद हैं । वे इस प्रकार--[१] ईर्यासमिति [२]भाषासमिति [३] एषणासमिति [४] आदाननिक्षेपण समिति [५] परिष्ठापनिकासमिति [६] मनोगुप्ति [७] वचनगुप्ति [८] कालगुप्ति पाँच ममिति और तीन गुप्ति मिलकर आठ प्रवचनमाता कहलाती हैं), [३] सुधा [१०] तृषा [११] शीत [१२] उष्ण [१३] दंशमशक [१४] अचेल [१५] अरति [१६] स्त्री [१७] चर्या-चलना [१८] निषद्या (बैठना), [१६] शय्या [२०] आक्रोश [२१] वध [२२] याचना [२३] अलाभ [२४] रोग [२५] तृणस्पर्श [२६] मैल [२७] सत्कार पुरस्कार [२८] प्रज्ञा [२६] अज्ञान [३०] दर्शन, इन वाईस परीषहों को जीतना [३१] क्षान्ति-क्षमा [३२] मुक्ति-निर्लोभता [३३] आर्जव [३४] मार्दव (कोमलता), [३५] लावव [३६] सत्य [३७] संयम [३८] तप, [३६] त्याग [४०] ब्रह्मचर्य, इन दस धर्मों की आराधना करना, [४१] अनित्य [४२j अशरण [४३] संसार [४४] एकत्व [४५] [४६] अशुचि [४७] आस्रव [४८] संवर [४६] निर्जरा [५०] लोक [५१] बोधिबीज [५२] धर्म, इन बारह अनुप्रेक्षाओं का चिन्तन करना; [५३] सामायिक [५४] छेदोपस्थापनीय [५५] परिहारविशुद्धि [५६] सूक्ष्मसाम्पराय [५७] यथाख्यात, इन पाँच चारित्रों का पालन करना ।
संवर के इन सत्तावन भेदों का सेवन करने से कर्म का आस्रव रुकता है और आस्रव रुकने से धीरे-धीरे आत्मा कर्मरहित होकर मुक्त हो जाता है।