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* सूत्र धर्म
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की दुकान पर नहीं गया था ? बहू का यह उत्तर सुन कर सेठजी चकित रह गये । उन्होंने कहा – हाँ, मन गया तो था सही । पर तुझे कैसे मालूम पड़ा ? बहू ने कहा- आपकी अंग चेष्टाओं से मैं ने यह अनुमान किया । (किसीकिसी का कहना है कि बहू को विशिष्ट ज्ञान था ) ।
इस दृष्टान्त का आशय यही है कि जैसे बहू ने सेठजी के वर्त्तमान कालीन विचार को सेठजी समझा, इसी प्रकार जो नय वर्त्तमानकालीन पर्याय को ही वस्तु समझता है, वह ऋजुसूत्र नय है ।
arriधमलंकारं इत्थी सयणाणि य ।
अच्छंदाजे न भुंजंति, न से चाइ ति बुच्च ॥ - दशवैकालिक, अ० २, गा. २
अर्थ - जो पुरुष विवश पराधीन होने के कारण वस्त्र, गंध, आभूषण, और शय्या आदि का उपभोग नहीं करते हैं, जिनमें भोग की आकांक्षा बनी हुई है, वह त्यागी नहीं कहलाते ।
जे य कंते पिये भोए, लद्धे वि पिट्ठी कुव्वइ । साहीये चयइ भोए, से हु चाइ चि बुच्चर ||
दश० अ० २, गा. ३.
जो पुरुष कमनीय और प्रिय भोगों के प्राप्त होने पर भी उनसे विमुख हो जाता है और अपनी इच्छा से उन भोगों का परित्याग करता है, वह त्यागी कहलाता है ।
यह कथन ऋजुसूत्र नय की अपेक्षा से जानना चाहिए । ऋजुसूत्र नप सिर्फ भावनिक्षेप को स्वीकार करता है ।
(५) जो नय पर्यायवाचक शब्दों में काल का, लिंग का, वचन का या उपसर्ग का भेद होने पर अर्थ में भेद मानता है वह शब्दनय कहलाता है । तात्पर्य यह है कि एक वस्तु के वाचक अनेक शब्द होते हैं। उनमें कोई शब्द स्त्रीलिंग होता है, कोई पुंलिंग होता है और कोई