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* धर्म प्राप्ति *
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डालने वाला कर्म अन्तराय कहलाता है । यह कर्म पाँच प्रकार से बँधता है: - [१] किसी को दान देने में बाधा डालना [२] किसी के लाभश्रम में बाधा डालना [३] खान-पान आदि भोग की वस्तुओं में अन्नराय डालना [४] - श्राभूषण आदि भोग की वस्तुओं में विघ्न डालना [५] वीर्यान्तरायसी को धर्मध्यान न करने देना अथवा संयम न लेने देना |
इन पाँच कारणों में बाँधे हुए अन्तर का अशुभ फल बंध के अनुसार ही पाँच प्रकार से भोगा जाता है । अर्थात् [१] दानान्तरायदान देने में विघ्न डालने वाला दान नहीं दे पाता। २] लाभान्तरायलाभ में विघ्न डालने पाले को भोग की प्राप्ति नहीं होती [४] उपभोगान्नराय - उपभोग में विघ्न डालने वाले को उपभोग की प्राप्ति नहीं होनी [५] वीर्यान्तराय -- धर्मध्यान आदि में बाधा डालने से धमंध्यान आदि में विघ्न उपस्थित होता है ।
यहाँ आठ कर्मों के बंध के कारण और उनके फलों का जो दिग्दर्शन कराया गया है, उस पर विवेकशील सज्जनों का विशेष ध्यान देना चाहिए और ऐसे कार्यों से बचना चाहिए जिनसे कर्म का बन्ध होता हो । जिनमें इतनी शक्ति नहीं हैं उन्हें भी कम से कम अशुभ कर्मों के बन्ध से तो बचना ही चाहिए |
mit के कारण ८५ हैं । वे इस प्रकार हैं: - ज्ञानावरण के ६, दर्शनावरण के ६, वेदनीय कम के २२, मोहनीय कर्म के ६, आयु कर्म के १६, नाम कर्म के ८, गोत्र कर्म के १६ और अन्तराय कर्म के ५ ।
आठों कर्मों के भोगने के मुख्य प्रकार ६३ हैं: - ज्ञानावरणीय के १०, दर्शनावरणीय के 8, वेदनीय के १६, मोहनीय के ५, आयु के ४, नाम के २८, गोत्र के १६ और अन्तराय के ५ । यह प्रकृतिवन्ध हुआ ।