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ॐ धर्म प्राप्ति
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विशिष्ट ज्ञान प्राप्त किया है और उस ज्ञान में उन्होंने पूर्वजन्मों को देखा है। उनके कथन पर श्रद्धा रक्खो । वे जगत् को धोखा देने वाले नहीं थे । वीतराग पुरुष किसी को गलत मार्ग नहीं बतलाते ।
(११) दृष्टिका क्रिया-किसी वस्तु को देखने से लगने वाली क्रिया। इसके भी दो भेद हैं-(१) जीवदृष्टिका-स्त्री, पुरुष, हाथी, घोड़ा, बाग, बगीचा नाटक आदि देखने से लगने वाली और (२) अजीवदृष्टिका-वस्त्र, आभूषण आदि को देखने से लगने वाली क्रिया।
(१२) स्पृष्टिका क्रिया-किसी का स्पर्श करने से लगने वाली क्रिया। इसके दो भेद-(१) जीव जीवस्पृष्टिका अर्थात् स्त्री, पुरुष, पशु, पक्षी आदि के अंगोपांगों का तथा पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति वगैरह का स्पर्श करने से जो क्रिया लगती है वह । कई-एक भोले लोग बिना ही किसी स्वार्थ या प्रयोजन के नमूना देखने के लिए धान्य या हरितकाय को हाथ में लेकर देखने लगते हैं और किसी सजीव वस्तु को देखते ही उसका स्पर्श करने लगते हैं । मगर इस विषय में बहुत विवेक रखने की आवश्यकता है। ज्ञानी पुरुषों ने कहा है कि जैसे अत्यन्त वृद्धावस्था के कारण तथा रोग और शोक के कारण अत्यन्त जीर्ण शरीर वाले वृद्ध पुरुष के ऊपर कोई बत्तीस वर्ष का नौजवान योद्धा पुरुष मुक्के का प्रहार करे तो उस वृद्ध को जैसा कष्ट होता है, वैसा ही दुःख पृथ्वी, पानी, धान्य आदि एकेन्द्रिय जीवों का स्पर्श करने से उन्हें होता है। एकेन्द्रिय के कितने ही सुकोमल जीव तो स्पर्श करने मात्र से मर भी जाते हैं। अतएव इस अनर्थ से बचने के लिए विशेष प्रयोजन के बिना सजीव वस्तु का स्पर्श नहीं करना चाहिए । (२) अजीवस्पृष्टिका-वस्त्र, आभूषण आदि अजीव वस्तुओं का स्पर्श करने से लगने वाली क्रिया। अजीव वस्तुओं का भी विना प्रयोजन स्पर्श नहीं करना चाहिए।
(१३) पाडुच्चिया (प्रातीत्यिकी) क्रिया-जीब और अजीव रूप बाह्य वस्तु के निमित्त से जो राग-द्वेष की उत्पत्ति होती है, उससे लगने वाली