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* जैन-तत्त्व प्रकाश
शरीर का अन्त होने पर वह पंच भूतों में मिल जाती हैं। फिर कुछ भी शेष नहीं रहता । इस प्रकार मानने वाले नास्तिक के मत से परलोक और पूर्वजन्म आदि कुछ भी नहीं ठहरता। अगर परलोक नहीं है तो इस जन्म में किये हुए पुण्य-पाप का फल आत्मा कहाँ और कैसे भोगेगा ? अगर पूर्वजन्म नहीं है तो इस जन्म में कोई सुखी, कोई दुःखी क्यों दिखाई देता है ? अगर सब के आत्मा पाँच महाभूतों से उत्पन्न हुए हैं तो सब सरीखे क्यों नहीं हैं ? संसार में, जीवों में जो विषमता देखी जाती है वह विना कारण के नहीं है । उसका कारण पूर्वजन्म में किये हुए शुभ या अशुभ कर्म ही हैं।
कहा जा सकता है कि यदि पूर्वजन्म है तो हमें उसका स्मरण क्यों नहीं होता ? अनेक वर्षों तक आत्मा पूर्वभवों में रहा हो तो उसे याद क्यों नहीं आती ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि पूर्वभव की बात तो दूर रही; इसी भव में आप माता के उदर में रहे हैं, यह बात तो आप भी सत्य मानते हैं। तो फिर उसकी याद क्यों नहीं आती ? माता के उदर की कैसी रचना है और किस प्रकार वहाँ नौ मास से कुछ अधिक समय तक निवास किया ? इन बातों का स्मरण न होने के कारण यह भी कहने लगोगे कि जीव गर्भ में निवास नहीं करता ? गर्भवास की बातें स्मरण न होने पर भी पूर्वजन्म क्यों नहीं स्वीकार करते ?
मनुष्य जब जागृत दशा में से स्वम-दशा में आता है तब उसे जागृत दशा की स्थिति का और शरीर का भी भान नहीं रहता। इसी प्रकार जब वह स्वम-दशा से जागृत-दशा में आता है तो वह स्वप्न-दशा की बातें भूल जाता है। फिर भी जागृतदशा और स्वमदशा को कोई अस्वीकार नहीं कर सकता। फिर पूर्व जन्म की बात तो दूर की है। उसका स्मरण न होने मात्र से पूर्वजन्म को स्वीकार न करना विवेकशीलता नहीं है।
इसके अतिरिक्त विशेष क्षयोपशम वाले जीवों को पूर्वजन्म की बातें याद भी आ जाती हैं और वे अपने पूर्वभवों को जैसा का तैसा देखते भी हैं । अतः कर्मों के क्षयोपशम के लिए प्रयत्नशील बनो। अपनी स्मृति और बुद्धि पर ही भरोसा करके मत चैठे रहो। महापुरुषों ने आध्यात्मिक साधना करके