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* सूत्रधर्म
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भेद नहीं है । नरक और स्वर्ग में भी रात-दिन आदि का विभाग नहीं है । फिर भी अढ़ाई द्वीप के काल की गणना के अनुसार वहाँ के जीवों की पु आदि की गणना की जाती है । काल से काल द्रव्य श्रादि अंत से रहित या अनादि अनन्त है— सदा से है और सदा ही रहेगा । भाव से रूपी,
वर्ण, गंध, अरस और अस्पर्श है । गुण से पर्यायों का परिवर्तन कराने वाला, नये को पुराना करने वाला, और पुराने को खपाने वाला है; वर्त्तना 'लक्षण वाला है । इस तरह एक-एक अजीव के पाँच-पाँच भेद होने से
४x५=२० भेद हुए । पहले बतलाये हुए १० भेद इनमें शामिल कर देने से विस्तार से ३० भेद होते हैं । यह चारों अजीव द्रव्य सदा शाश्वत हैं । रूपी अजीव के ५३० भेद आगे बतलाये जाते हैं।
रूपी अजीव के भेदरूपी अजीव ५३० प्रकार के हैं। पहले कहा आ चुका है कि रूपी अजीव सिर्फ पुद्गल है और उसमें पाँच वर्ण, दो गंध पाँच रस, पाँच संस्थान और आठ स्पर्श होते हैं ।
काला, हरा, लाल, पीला और श्वेत, इन पाँचों वर्ण वाले पदार्थों में २ मंत्र, पाँच रस, ८ स्पर्श और पाँच संस्थान, यह बीस बोल पाये जाते हैं । अतः २०×५=१००भेद वर्षाश्रित हुए । सुरभिगंध और दुरभिगंध में ५ वर्ष, ५ रस, ८ स्पर्श और पाँच संस्थान, यह ३२ बोल पाये जाते हैं; श्रतः २३x२=४३ भेद गंधाश्रित हुए । मधुर, कटुक, तीखा, चार, और कपायला --- इन पाँच रसों में ५ वर्ण, २ गंध, ८ स्पर्श और पाँच संस्थान, यह २० बोल पाये जाते हैं । अतः २०५=१०० भेद रसाश्रित हुए। गुरु और लघु स्पर्श में ५ वर्ण, २ गंध, ५ रस और (गुरु लघु को छोड़ कर ) ६ स्पर्श तथा ५ संस्थान यह २३ बोल पाये जाते हैं। अतः दोनों के ४६ भेद हुए । शीत और उष्ण स्पर्श में भी इसी प्रकार ४६ बोल पाये जाते हैं (भेद यह है कि यहाँ आठ स्पर्शो में से शीत और उष्ण स्पर्शो को छोड़ कर छह स्पर्श समझना चाहिए ।) स्निग्ध और रूक्ष, कोमल तथा कठोर -इन में भी पूर्वोक्त प्रकार से छह-छह स्पर्श लेकर २३-२३ बोल पाये जाते हैं। इस प्रकार २३८ = १८५ भेद स्पर्शाश्रित होते हैं ।