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* सूत्र धर्म *
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वस्त्र दान करने से (६) मनपुराणे - मन से दूसरों की भलाई चाहने से (७) वचन पुणे- -वचन से गुणीजनों का कीर्तन करने से और सुखदाता वचन बोलने से (८) कायपुराणे - शरीर से दूसरों की वेयावच्च करने से, पराया दुःख दूर करने से, जीवों को साता उपजाने से (६) नमस्कार पुणे – योग्य पात्र को नमस्कार करने से और सबके साथ विनम्र व्यवहार करने से |
यह नौ प्रकार के पुण्य करते समय पुद्गलों पर से ममता उतारनी पड़ती है, मिहनत भी करनी पड़ती है, किन्तु पुण्य का फल भोगते समय श्राराम और सुख की प्राप्ति होती है। नौ प्रकार से बांधे हुए पुण्य के फल बयालीस प्रकार से भोगे जाते हैं । वे बयालीस प्रकार यह हैं:
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१. सातावेदनीय २. उच्चगोत्र ३. मनुष्यगति ४. मनुष्यानुपूर्वी ५. देवगति ६. देवानुपूर्वी ७. पंचेन्द्रिय जाति ८. श्रदारिक शरीर 8. वैक्रिय शरीर १०. आहारक शरीर ११. तेजस शरीर १२. कार्मण शरीर १३. श्रौदारिक शरीर के अंगोपांग १४. वैक्रिय शरीर के अंगोपांग १५. आहारक शरीर के अंगोपांग १६. वज्रऋषभनाराचसंहनन १७. समचतुरस्र संस्थान १८. शुभ वर्ण १६. शुभ गंध २०. शुभ रस २१. शुभ स्पर्श २२. अगुरुलघुत्व (शीशे के गोले के समान भारी और रुई के समान एकदम हल्का शरीर न होना), २३. पराघात नाम (दूसरों से पराजित न होना), २४. उच्छ्वास नाम ( पूरा उसांस लेना), २५. आतप नाम ( प्रतापवान् होना), २६. उघोत नाम (तेजस्वी होना), २७. चलने की शुभ गति २८. शुभ- निर्माण नाम (अंगोपांग पथास्थान व्यवस्थित होना), २६. श्रस नाम ३०. बादर नाम ३१. पर्याप्त नाम ३२. प्रत्येक नाम (एक शरीर में एक जीव होना), ३३. स्थिर नाम ३४. शुभ नाम ३५. सुभग नाम ३६. सुस्वर नाम ३७. आदेय नाम (जिससे पर्वमान्य वचनहीं), ३८. पशोकीर्त्ति नाम ३६. देवायु ४०. मनुष्यायु ४१. तेर्यन्च की यु ४२. तीर्थकर नाम कर्म ।
पुण्य ऐसा तत्त्व हैं। जैसे समुद्र के एक पार
पूर्वी कहलाती है।
पुण्य तत्व को खूब गहराई से समझाया चाहिए। आदरने योग्य भी है और त्यागने योग्य भी है।
एक भव से दूसरे से जाने वाली