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धर्म प्राप्ति
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चौइन्द्रिय हैं। यह भी दो प्रकार हैं-अपर्याप्त और पर्याप्त । यह तीनों प्रकार के त्रस जीव विकलेन्द्रिय या विकलत्रस कहलाते हैं। विकलेन्द्रिय पूर्वोक्त छह भेद हैं।
पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च के बीस भेद हैं-(१) जलचर अर्थात् पानी में रहने वाले मतय आदि जीव । इनके चार भेद हैं-संज्ञी और असंझी के पर्याप्त तथा अपर्याप्त । जलचर जीवों के कुछ विशेष यह हैं-मच्छ, कच्छ. मगर, सुंसुमार, कछुवा, मेंढक आदि।
(२) स्थलचर-पृथ्वी पर चलते-रहने वाले जीव । इनके भी जलचर के समान संज्ञी, असंज्ञी के पर्याप्त, अपयोप्त यह चार भेद हैं ! स्थलचरां के कुछ विशेष नाम यह हैं—एक खुर वाले, घोड़े, गधे, खच्चर आदि । दो खुर (फटे खुर) वाले–गाय, भैंस, बकरा, हिरन आदि । (क) गंडीपद-सुनार के एरन के समान गोल पैरों वाले हाथी, गेंडा आदि। (ख) सणपद-पंचे वाले सिंह, चीता, कुत्ता, बिल्ली, बन्दर आदि ।
. (३) खेचर-आकाश में उड़ने वाले । इनके भी चार भेद है-संज्ञी और असंज्ञी के पर्याप्त तथा अपर्याप्त । खेचर के विशेष नाम यह हैं(क) रोमपक्षी अर्थात् बालों के पल वाले, जैसे-तोता, मैना, कौश्रा, चिड़िया, कमेडी, कबूतर, चील, बगुला, बाज, हौल, चण्डूल, जलकुक्कुर आदि । (१) चर्मपक्षी अर्थात् चमड़े के पंख वाले, जैसे-चमगादड़, वटबगुला आदि। (ग) सामन्तपक्षी अर्थात् डिब्बे के समान, भिड़े हुए गोल पंखों वाले, (घ) विततपक्षी-विचित्र प्रकार के पंखों वाले। यह अन्तिम दो प्रकार के पक्षी अढाई द्वीप के बाहर होते हैं ।
(४) उरःपरिसर्प-हृदय के बल से चलने वाले सर्प आदि प्राणी । इनके भी चार भेद हैं-संज्ञी और असंज्ञी तथा इन दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त । उर परिसर्प के कुछ विशेष नाम यह हैं:-(१) अहि (सर्प), इनमें कोई फन वाले होते हैं और कोई बिना फन के होते हैं। यह सर्प पाँचों ही वर्ण के होते हैं। (२) अजगर-जो मनुष्य आदि को भी निगल जाते हैं।