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® जैन-तत्त्व प्रकाश
की मिट्टी (१२) चांदी की मिट्टी (१३) सोने की मिट्टी (१४) वज्र-हीरा (१५) हड़ताल (१६) हिंगलु (१७) मैनसिल (१८) रत्न (१६) सुरमा (२०) प्रबालमूंगा (२१) अभ्रक (भोडल) और (२२) पारा । यह २२ भेद कठिन पृथ्वी के हैं।
इनमें से रत्न अठारह प्रकार के कहे हैं-[१] गोमेद [२] रुचक [३] अंक [४] स्फटिक [५] लोहिताक्ष [६] मरकत [७] मसलग [८] भुजमोचक [६] इन्द्रनील [१०] चन्द्रनील [११] गेरुक [१२] हंसगर्भ [१३] पोलक [१४] चन्द्रप्रभ [१५] वैडर्य [१६] जलकान्त [१७] सूर्यकान्त [१८] सुगन्धी रत्न । इस प्रकार पृथ्वीकाय के अनेक भेद जानने चाहिए।
(२) बंभी थावरकाय (अप्काय) के चार भेद हैं-[१] समस्त लोक में व्याप्त सूक्ष्म अप्काय [२] लोक के देशविभाग में दृष्टिगोचर होने वाला बादर अप्काय; इन दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से चार भेद होते हैं। बादर अप्काय के विशेष भेद यह हैं-[१] वर्षा का पानी [२] सदा रात्रि को बरसने वाला ढार का पानी [३] बारीक-बारीक बूंद बरसने वाला (मेघरवे का) पानी [४] धूमर (शबनम) का पानी [५] श्रोले [६] ओस [७] गर्म पानी (पृथ्वी से कई जगह गन्धक की खान आदि के प्रभाव से कुदरती गर्म पानी निकलता है, वह भी सचित्त होता है), [६] लवणसमुद्र का तथा कुँआ आदि का खारा पानी [१०] खट्टा पानी [११] दूध जैसा (क्षीर समुद्र का) पानी [१२] वारुणी का मदिरा के समान पानी [१३] धी
जैसा (घृतवर समुद्र का) पानी [१४] मीठा पानी (कालोदधि समुद्र का), [१५] इक्षु सरीखा पानी (असंख्यात समुद्रों का पानी ऐसा होता है), इत्यादि अनेक प्रकार का पानी है।
(३) सपि थावरकाय (तेजस्काय)-इसका पहला भेद' सूक्ष्म तेजस्काय है। इस काय के जीव सारे लोकाकाश में ठसाठस भरे हैं। सूक्ष्म तेजस्काय के दो भेद हैं—अपर्याप्त और पर्याप्त । दूसरा भेद बादर तेजस्काय है। बादर तेजस्काय लोक के देशविभाग (अमुक भाग) में रहता है। इसके भी अपर्याप्त और पर्याप्त-यह दो भान हैं। बादर तेजारकाय के १४