________________
* सूत्र धर्म *
(१५) पन्द्रह भेद -- सूक्ष्म एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, संज्ञी पंचेन्द्रिय, इन सात के पर्याप्त और पर्याप्त के भेद से चौदह और पन्द्रहवें सिद्ध । संसारी जीवों के एक अपेक्षा से ५६३ भेद होते हैं । वे नीचे लिखे जाते हैं ।
नारकों के चौदह भेद
३६७
(१) घम्मा (२) वंशा (३) सीला (४) अंजना (५) रिष्टा (६) मघा और (७) माघवती, इन सात नरकों में रहने वाले नारक जीवों के पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से नारक जीव चौदह प्रकार के हैं ।
तिर्यंच के ४८ भेद
(१) इंदी थावरका (पृथ्वीकाय) के चार भेद - (१) सूक्ष्मपृथ्वी काय, जो समस्त लोक में काजल की कुप्पी के समान ठसाठस भरे हुए हैं, किन्तु अपनी दृष्टि के मोचर नहीं होते । (२) बादर पृथ्वीकाय, जो लोक के देशविभाग में रहते हैं, जिनमें से हम किसी-किसी को देख सकते हैं और किसीकिसी को नहीं देख सकते । इन दोनों पर्याप्त एवं पर्याप्त के भेद से पृथ्काय जीवों के चार भेद होते हैं। इनमें से बादर पृथ्वीकाय के विशेष भेद इस प्रकार हैं: - (१) काली मिट्टी (२) नीली मिट्टी (३) लाल मिट्टी (४) पीली मिट्टी (५) सफेद मिट्टी (६) पाण्डु और (७) मोपीचन्दन, इस तरह कोमल मिट्टी के सात प्रकार हैं । और (१) खान की मिट्टी (२) मुरड़ (३) रेत-बालू (४) पाषाण ( ५ ) शिला ( ६ ) नमक (७) समुद्री चार (८) लोहे की मिट्टी (E) तांबे की मिट्टी (१०) तरुश्रा की मिट्टी (११) शीशे
* जिसमें हिताहित सोचने की विशेष संज्ञा नहीं होती वे संज्ञी और जिनमें वह संज्ञा होती है वे संज्ञी कहलाते हैं । सब देव, सब नारकी, गर्भज मनुष्य एवं तिर्यञ्च संज्ञी होते हैं । इनके सिवाय अन्य सब जीव असंज्ञी होते हैं ।