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* सूत्र धर्म
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प्रकार प्रधान हैं-[१] भोभर की अग्नि [२] कुंभार के अलाब (अवा) की अग्नि [३] टूटती ज्वाला [४] अखण्ड ज्वाला- [५] चकमक की अग्नि [६] बिजली की अग्नि [८] खिरने वाले तारे की अग्नि [८] आरणि की लकड़ी से पैदा होने वाली अग्नि [8] बाँस की अग्नि [१०] काठ की अग्नि [११] सूर्यकान्त काच की अग्नि [१२] दावानल की अग्नि [१३] उल्कापात (आकाश से गिरने वाली) अग्नि [१४] वडवानल-समुद्र के पानी का शोषण करने वाली अग्नि । इस प्रकार अग्निकाय के मुख्य चार भाग हैं।
(४) सुमति थावरकाय (वायुकाय) के मुख्य चार भेद हैं-सूक्ष्म और बादर के पर्याप्त और अपर्याप्त । अर्थात् सूक्ष्म वायुकाय पर्याप्त, सूक्ष्म वायुकाय अपर्याप्त, बादर वायुकाय अपर्याप्त, बादर वायुकाय पर्याप्त, बादर वायुकाय अपर्याप्त । सूक्ष्म वायु समस्त लोक में ठसाठस भरा है। बादर वायुकाय लोक के देशविभाग में होता है। बादर वायुकाय सोलह प्रकार का है-[१] पूर्व का वायु [२] पश्चिम का वायु [३] उत्तर का वायु [४] दक्षिण का वायु [५] ऊँची दिशा का वायु [६] नीची दिशा का वायु [७] तिर्की दिशा का वायु [८] विदिशा का वायु [६] भ्रमर वायु (चक्कर खाने वाला वायु), [१०] चारों कोनों फिरने वाला मएडलवायु [११] गुंडल वायु-ऊँचा चढ़ने वाला [१२] गुंजन करने वाला वायु [१३] झाड़ आदि को उखाड़ देने वाला झंझावायु [१४] शुद्ध वायु (धीमा-धीमा चलने वाला), [१५] धन वायु [१६] तनुवायु (यह दो प्रकार के वायु नरक और स्वर्ग के नीचे हैं । इत्यादि अनेक प्रकार का वायु है।
(५) पयावच्च थावरकाय (वनस्पतिकाय) के मुख्य छह भेद हैं-[१] सर्वलोक में व्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकाय [२] लोक के देशविभाग में रहने वाला बादर वनस्पतिकाय । बादर वनस्पतिकाय के दो भेद हैं—प्रत्येक शरीर (जिस वनस्पति से एक शरीर में एक ही जीव हो) और साधारण शरीर (जिसके एक शरीर में अनन्त जीव हों)। इस प्रकार सूक्ष्म, प्रत्येक और साधारण के अपर्याप्त और पर्याप्त के भेद से छह भेद हो जाते हैं ।
वनस्पतिकाय के विशेष भेद इस प्रकार हैं।-प्रन्येक वनस्पति के