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ॐ धर्म प्राप्ति
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कभी कोई चुटकुला बता दिया लो निहाल हो जाएँगे । इस प्रकार लालच से प्रेरित होकर व्याख्यान सुनते हैं । (६) कई लोग विचार करते हैं कि अमुक साहब व्याख्यान सुनने जाते हैं तो चलो हम भी सुन लें । ऐसे लोग दोस्ती निभाने के लिए जाते हैं। (७) कुछ लोग बड़े आदमी के दबाव में आकर शर्म के मारे व्याख्यान सुनते हैं। (८) कोई-कोई स्त्री-पुरुषों का रूप-शृङ्गार देखकर अपनी दुष्ट वासना का पोषण करने के लिए भी व्याख्यान-श्रवण करने चले जाते हैं।
__इस प्रकार अनेक प्रयोजनों से जो शास्त्रश्रवण करने के लिए चले जाते हैं, किन्तु जिनके अन्तःकरण में शुद्ध श्रद्धा नहीं होती, उन्हें गुणों की प्राप्ति नहीं होती । कहा भी है:
दीनी पण लागी नहीं, रीते चूले फूंक ।
गुरु बेचारा क्या करे, चेले में है चूक । जिस चूल्हे में आग नहीं है और राख भरी है, उसमें फूंक मारने से लाभ तो कुछ होता नहीं, प्रत्युत राख से मुँह भर जाता है। इसी प्रकार उक्त श्रेणी के श्रोताओं को व्याख्यान सुनाने से वक्ता को परिश्रम तो होता है पर उपकार कुछ नहीं होता है। क्यों कि
पत्रं नैव यदा करीरविटपे दोषो वसन्तस्य किम् ? नोलू केन विलोक्यते यदि दिवा सूर्यस्य किं दूषणम् ? वर्षा नैव पतंति चातकमुखे मेघस्य किं दूषणम् ? यद्भाग्ये विधिना ललाटलिखितं कर्मस्य किं दूषणम् ?
-म हरि।
अर्थात्-बसन्त ऋतु प्राप्त होने पर भी अगर करीर (कर) के पेड़ में कौंपलें नहीं फूटतीं तो वसन्त ऋतु का क्या दोष है ? जाज्वल्यमान सूर्य की विद्यमानता में भी अगर उल्लू दिन में नहीं देखता तो इसमें सूर्य का क्या अपराध है ? अतिवृष्टि होने पर भी अगर चातक के मुख में वद नहीं पड़ते तो वर्षा का क्या दोष है ? अगर किसी का भाग्य ही खराब है तो पुरुषार्थ का