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ॐ धमे प्राप्ति
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यह शास्त्र की वाणी सच्चे सुख की झाँकी दिखलाती है। जहाँ आशा है, तृष्णा है, राग-द्वेष है, वहाँ सुख नहीं है। पर-पदार्थों के संयोग से सुख की आशा करना बालू में से तेल निकालने की आशा करने के समान है। इसके विपरीत ज्यों-ज्यों पर-पदार्थों से सम्बन्ध हटता जाता है त्यों-त्यों सुख की प्राप्ति होती है । जब मनुष्य संसार के समस्त पदार्थों के साथ संयोग का त्याग कर देता है; पूर्ण निष्पृह हो जाता है, तब उसे निराकुलता का अनि र्वचनीय सुख प्राप्त होता है । यही धर्म की स्पर्शना है। जो धर्म की स्पर्शना करता है अर्थात् सम्पूर्ण चारित्र को ग्रहण करता है, उसी का मनुष्य भव, आर्यक्षेत्र आदि पूर्वोक्त सब सामग्री का पाना सार्थक होता है ।
मोक्षप्राप्ति के लिए क्रम से पूर्वोक्त दस साधनों की आवश्यकता होती है। इन साधनों के अभाव में मुमुक्षु जनों के अभीष्ट अर्थ की सिद्धि नहीं होती । किन्तु इन साधनों की प्राप्ति होना अत्यन्त कठिन है। आप अपनी स्थिति पर विचार कीजिए। अनन्तानन्त पुण्योदय से इस समय आपको यह साधन प्राप्त हुए हैं। यथोचित लाभ उठा लेना और परम सुखी बन जाना अब आपके हाथ में है। अगर आप यह अवसर चूक जाते हैं तो फिर ऐसा स्वर्ण अवसर मिलना दुर्लभ होगा।