________________
ॐ धर्म प्राप्ति
[३७६
को धर्म के विषय में जरा भी पक्षपात न करते हुए परीक्षा करनी चाहिए। परीक्षा करने पर जो धर्म हितकारी प्रतीत हो, जिससे यह जन्म और भविष्य उज्जवल एवं मंगलमय बने उसी धर्म का ग्रहण-पालन करना चाहिए।
(२) दुःख से भयभीत हो-जो नरक-निगोद आदि के दुःख से डरेगा वही धर्मकथा श्रवण करके पापकर्म से निवृत्त होगा। जो पाप-कर्म करने में निडर होगा, जिसे परलोक का भय नहीं होगा, उसे धर्मोपदेश कैसे लगेगा?*
___ (३) सुख का अभिलाषी हो । जो स्वर्ग और मोक्ष के सुख को मानता होगा और उसकी इच्छा करता होगा वह धर्मकथा श्रवण करेगा और धर्ममार्ग में अपनी शक्ति लगाएगा।
(४) बुद्धिमान् हो । जो बुद्धिमान् होगा वही धर्म के रहस्यों को समझेगा और बुद्धिमत्ता के साथ प्रवृत्ति करके, तोल कर सत्य धर्म को अंगीकार करेगा।
(५) मनन करने वाला हो। उपदेश सुनकर वहीं का वहीं पल्ला झटक दे, एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दे तो कोई लाभ नहीं होता । श्रोता का कर्तव्य है कि धर्म की बात सुन कर उसे हृदय में धारण करे, उस पर मनन करे, सत्य-असत्य का निर्णय करे ओर फिर उसे ग्रहण करे या त्यागे।
(६) धारण करने वाला हो । धर्म की जो बात श्रवण करे उसे हृदय में धारण कर रक्खे । ऐसा करने से ही श्रोता विशेषज्ञ बन सकता है ।
(७) हेय उपादेय ज्ञेय का ज्ञाता हो। सुनी हुई सभी बातें एक-सी नहीं होती। इस लिए विद्धान् श्रोता उन्हें तीन विभागों में विभक्त करते हैं।
__दृष्टान्त-कन्दमूल खाने वाले एक जैन से किसी साधु ने कहा कि बहुत पाप करोगे तो नरक में जाना पड़ेगा। जैन ने पूछा-महाराज! नरक के स्थान कितने हैं ? साधु ने कहा-नरक सात हैं । जैन बोला-अरे महाराज ! मैं तो पन्द्रहवें नरक में जाने के लिए कमर कसे बैठा था, आपने तो आधे भी नहीं बतलाये ? अब चिन्ता नहीं !
ऐसे निडर श्रोता पर धर्मोपदेश का क्या प्रभाव पड़ेगा?