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ॐ धर्म प्राप्ति ®
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होता है, वह आदमी उस मकान में नहीं जाता है । कदाचित् जाना किनार्य हो तो डरता-डरता जाता है कि भूत कहीं सतावे नहीं ! मकान में एक पहर का काम होगा तो एक घड़ी में झटपट उसे निवटा कर बाहर निकल आयगा।
और जब तक अन्दर रहेगा, डरता ही रहेगा। इसी प्रकार शास्त्र श्रवण करने के लिए आने वाला पुरुष जब यह सुनता है कि अमुन्न कार्य करने से पाप होता है तो जहाँ तक हो सकेगा, उस कार्य को वह नहीं करेगा । करना अनिवार्य होगा तो भी करते-करते झिझकेगा, थोड़ा कना और से डरता रहेगा । इस प्रकार करते-करते कभी पाप को बिलकुल ही त्याग देगा।
कुछ लोग कहते हैं-धर्मशास्त्र हमारी समझ में तो आता नहीं है, फिर सुनने से क्या लाभ है ? इसका उत्तर यह है-जब किसी को साँप या बिच्छू काट खाता है तो मंत्रवादी उसके सामने बैठकर मंत्र पढ़ता है। विष से पीड़ित पुरुष को मंत्र समझ में नहीं आता; फिर भी विष तो उतर ही जाता है। इसी प्रकार धर्मश्रवण करने से पाप कम हो जाते हैं, सुनते-सुनते शास्त्र समझ में आने लगते हैं। इस तरह शास्त्र-श्रवण करने से अवश्य ही लाभ होता है । दशवैकालिक में कहा है:
सोचा जाणइ कल्लाणं, सोचा जाणइ पावगं !
उभयं पि जाणइ सोच्चा, जं सेयं तं समायरे ॥ अर्थात्-शास्त्रों का श्रवण करने से पुण्य और पाप तथा उभय का ज्ञान होता है। इस काम को करने से पुण्य होता है और इस कार्य को करने से पाप होता है, यह बात शास्त्र से ही ज्ञात होती है। शास्त्र ही से यह भी पता चलता है कि पुण्य और पाप का फल सुख और दुःख है। दोनों का फल जान कर जो श्रेयस्कर हो उसे स्वीकार करेगा। अतः सद्गुरु का उपदेश अवश्य सुनना चाहिए।
श्रोता के गुण
(१) धर्म की परीक्षा करे। जब कोई मनुष्य किसी वस्तु को ग्रहण करना चाहता है तो अनेक प्रकार से उसकी परीक्षा करता है । एक पैसे की