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धर्म प्राप्ति
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निकली हैं, उनमें की एक श्रेणी पर अनुक्रम से जन्म-मरण करते-करते ठेट लोक तक बीच के एक भी प्रदेश को छोड़े बिना सब प्रदेशों का स्पर्श करे; तदनन्तर उससे लगी हुई दूसरी श्रेणी पर मेरु से आरम्भ करके जन्ममरण करते-करते समस्त प्रदेशों का स्पर्श करे । तत्पश्चात् तीसरी श्रेणी पर और फिर चौथी श्रेणी पर, इस प्रकार असंख्यात श्राकाशश्रेणियों में अनुक्रम से जन्म-मरण करके स्पर्श करे। तब सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गलपरावर्त्तन होता है । यहाँ भी यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि एक श्रेणी का स्पर्श करते-करते और अनुक्रम से उसे पूरा करने से पहले अगर दूसरी श्रेणी का स्पर्श कर ले या उसी श्रेणी के आगे-पीछे का प्रदेश स्पर्श कर ले तो वह श्रेणी गिनती में नहीं ली जाती। उस श्रेणी का स्पर्श करना व्यर्थ समझना चाहिए। श्रेणी का स्पर्श करना तभी गिना जाता है जब मेरु से आरम्भ करके अनुक्रम से सब आकाशप्रदेशों को लोक के अन्त तक स्पर्श करे बीच में दूसरी श्रेणी का स्पर्श न करे और उसी श्रेणी के आगे-पीछे के प्रदेशों का भी स्पर्श न करे । फिर उस श्रेणी से लगी हुई दूसरी, तीसरी, चौथी आदि श्रेणियों को भी अनुक्रम से स्पर्श करे । अगर क्रम का भङ्ग हो गया तो पहले का स्पर्श करना गिनती में नहीं आता । यह सूक्ष्म क्षेत्र पुद्गपरावर्त्तन है ।
(५) बादर काल पुद्गलपरावर्त्तन - [१] समय [२] श्रावलिकाउंगली पर जल्दी-जल्दी डोरा लपेटते समय एक श्राँटे में जितना काल लगता है उतने काल अर्थात् असंख्यात समय की एक श्रावलिका होती है । [३] श्वासोच्छ्वास [४] स्तोक (सात श्वासोच्छ्वास का एक स्तोक होता है), [५] लव (तेजी के साथ घास काटते समय एक पूला घास काटने में जितना समय लगता है, उसे लव कहते हैं), [६] मुहूर्त्त (दो घड़ी), [७]
होत्र ( दिन-रात ) [ ८ ] पक्ष ( पखवाड़ा), [६] मास [१०] ऋतु (वसंत आदि दो-दो मास का काल ), [११] अयन ( छह मास ), [१२] संवत्सर (एक वर्ष), [१३] युग (पाँच वर्ष), [१४] पूर्व (७० लाख ५६ हजार वर्ष), [१५] पन्य (सौ-सौ योजन लम्बा, चौड़ा और गहरा कुंच्या बालाओं से ठसाठस भरा जाय; फिर सौ-सौ वर्ष में एक-एक बालाग्र निकाला जाय ।