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जैन-तत्त्व प्रकाश
[२०] एक वर्ष में दस बार कपट करना ।
(२१) सचित्त मिट्टी, सचित्त पानी या वनस्पति आदि किसी भी सजीव वस्तु से भरे हुए बर्तन से आहार-पानी आदि ग्रहण करना ।
यह इक्कीस काम करने से सबल दोष लगते हैं। जैसे निर्बल मनुष्य पर पहाड़ टूट पड़ने पर उसकी मृत्यु हो जाती है, उसी प्रकार इन इक्कीस कार्यों से संयम की बात हो जाती है। बीस असमाधि दोषों का तथा इक्कीस सबल दोषों का कथन श्रीदशाश्रुतस्कंध में और श्रीसमवायांगसूत्र में किया गया है।
योगसंग्रह
योगसंग्रह के बत्तीस भेद हैं । जिस कार्य के करने से मन वचन काय के योगों का निग्रह होता है, जिसके कारण योगाभ्यास भलीभाँति हो सकता है. उसे योगसंग्रह कहते हैं। योगी जनों को यह हृदय रूपी कोष में संग्रह करके रखने योग्य हैं, इस कारण इनका योगसंग्रह नाम पड़ा है। वे इस प्रकार हैं
(१) शिष्य को अनजान में या जान-बूझ कर जो भी दोष लगे हों, वे सब उसी प्रकार गुरु के समक्ष निवेदन कर दे।
(२) गुरु, शिष्य के मुख से सुने हुए दोषों को किसी के आगे न कहे। (३) कष्ट आ पड़ने पर भी धर्म का त्याग न करे किन्तु दृढ़ रहे ।
(४) इस लोक में महिमा-पूजा की कामना से और परलोक में इन्द्र आदि की ऋद्धि प्राप्त करने की कामना से तपश्चर्या न करे ।
(५) ज्ञान के लाभ की शिक्षा आसेविनी शिक्षा कहलाती है और आचार के लाभ की शिक्षा ग्रहणी शिक्षा कहलाती है । कोई दोनों प्रकार की या कोई एक प्रकार की शिक्षा दे तो उसे हितकारी समझकर अंगीकार करना ।