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® जैन-तत्त्व प्रकाश
(१५) एक प्रहर रात्रि व्यतीत होने के बाद और सूर्योदय होने से पहले तक बुलन्द आवाज से बोलना तथा परस्पर में अशांति पैदा करना ।
(१६) ऐसा क्लेश उत्पन्न कर देना जिससे आत्मघात का अवसर उपस्थित हो जाय तथा संघ में फूट उत्पन्न करना ।
(१७) किसी के दिल को दुःख पहुँचाने वाले कडक वचन बोलना और झुंझला कर तिरस्कारयुक्त वचन कहना।
(१८) स्वयं चिन्ता-फिक्र करना और दूसरे के हृदय में चिन्ता उत्पन्न करना ।
(१६) नवकारसी आदि तप न करते हुए प्रातःकाल से संध्या समय तक भिक्षा ला-लाकर खाना ।
(२०) एषण (जाँच) बिना ही आहार-पानी आदि वस्तु ग्रहण कर लेना।
इन उपर्युक्त बीस कामों से साधु को असमाधि दोष लगता है। जैसे बीमारी के कारण शरीर निर्बल बन जाता है, उसी प्रकार इन बीस दोषों के सेवन से संयम निर्बल हो जाता है ।
सबल दोष
जिन बड़े-बड़े दोषों से संयम कलंकित होता है, उन्हें सबल या शबल दोष कहते हैं । ये दोष इस प्रकार हैं:
(१) हस्तकर्म-हस्तमैथुन करना । (२) मैथुन-सेवन करना। (३) रात्रि में अशन, पान आदि चारों आहार करना । (४) साधु के लिए बनाया हुआ आधाकर्मी आहार ग्रहण करना । (५) राजपिण्ड (बल-वीर्यवर्द्धक-मांस-मदिरा आदि) लेना ।
(६) साधु के निमित्त मोल लिया हुआ आहार लेना (क्रीतकृत) दोष, साधु के लिए उधार लेकर दिया हुआ आहार लेना (प्रामित्य) दोष, निर्बल