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* जन-तत्व प्रकाश
उपाध्यायजी की १६ उपमाएँ
किसी भी श्रेष्ठ या निकृष्ट वस्तु के स्वरूप को समझने-समझाने के लिए विशेषज्ञ पुरुष उपमाओं का प्रयोग करते आये हैं । प्रसिद्ध वस्तु के साथ जब किसी वस्तु की तुलना की जाती है तो उसके गुण-धर्म का स्पष्ट ज्ञान हो जाता है । यह पद्धति सदा से चली आ रही है। तदनुसार उपाstart के लिए उत्तराध्ययनसूत्र में १६ उपमाएँ दी गई हैं । उपाध्यायजी में बहुत-सी विशेषताएँ होती हैं । उन सब विशेषताओं को किसी एक पदार्थ की उपमा द्वारा प्रकट करना सम्भव नहीं है । अतएव उन विशेषताओं को प्रकाशित करने के लिए १६ उपमाएँ दी गई हैं। वे इस प्रकार हैं:
(१) जैसे शङ्ख में भरा हुआ दूध खराब भी नहीं होता और विशेष शोभा देता है तथा वासुदेव के पाञ्चजन्य शङ्ख की ध्वनि का श्रवण करने मात्र से ही शत्रु की सेना भाग जाती है; उसी प्रकार उपाध्यायजी द्वारा प्राप्त किया हुआ ज्ञान नष्ट भी नहीं होता है और अधिक शोभा देता है । तथा उपाध्यायजी के उपदेश की ध्वनि के श्रवण से पाखण्ड और पाखण्डी पलायन कर जाते हैं ।
(२) जैसे सब प्रकार के आभूषणों से सुसज्जित, कम्बोज देश में उत्पन्न अश्व दोनों ओर वादित्रों द्वारा सुशोभित होता है, उसी प्रकार उपाstart साधु के सुहावने वेष में सज्जित बने हुए और स्वाध्याय की मधुर ध्वनि रूप वादित्र के निर्घोष से शोभा देते हैं ।
(३) जैसे भाट, चारण और वन्दी जनों की विरुदावली से उत्साहित हुआ शूरवीर सुभट शत्रु को पराजित करता है, उसी प्रकार उपाध्यायजी चतुर्विध संघ की गुणकीर्त्तन रूप विरुदावली से उत्साहित होकर मिथ्यात्व का पराजय करते हुए शोभा देते हैं ।
(४) जैसे साठ वर्ष की अवस्था वाला और अनेक हथनियों के वृन्द से परिवृत हस्ती शोभा पाता है, उसी प्रकार उपाध्यायजी श्रुत-सिद्धांत के