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ॐ जैन-तत्त्व प्रकाश
संयम की प्राप्ति होना बहुत कठिन है । क्योंकि ३६ तरह के मनुष्य संयम के योग्य कहे हैं। यथा- (१-२) आठ वर्ष से कम और सत्तर वर्ष से ऊपर वय वाला (३) स्त्री को देखते ही कामातुर हो जाने वाला (४) अधिक पुरुषवेद के उदय वाला (५) दहजड़ (बहुत मोटे शरीर वाला), स्वभावजड़ ( हठी), और वचनजड़ (पूरी तरह बोल न सकने वाला), (६) कोढ़, भगंदर, जलोदर आदि राजरोगों वाला (७) राजा का अपराधी (८) देवयोग से अथवा शीत आदि के योग से विकल (8) चोर (१०) अंधा (११) दासीपुत्र (गोला), (१२) महाक्रोधी (१३) मूर्ख (१४) हीनांग - नकटा, काणा लँगड़ा आदि (१५) कर्ज - दार (१६) मतलवी ( मतलब सिद्ध होते ही संयम छोड़कर भाग जाने का इच्छुक), (१७) पूर्व - पश्चात् डर वाला (१८) जिसे स्वजन की आज्ञा न प्राप्त हुई हो। यह अठारह प्रकार के पुरुष संयम ग्रहण करने के पात्र नहीं हैं। तथा १८ इसी प्रकार की स्त्रियाँ और (१६) गर्भवती (२०) बालक को स्तन का दूध पिलाने वाली, यह वीस प्रकार की स्त्रियाँ संयम की पात्र नहीं हैं। यह ३८ और एक नपुंसक । इस कथन से विचार कीजिए कि मनुष्य जन्म आदि सामग्री मिल जाने पर भी संयम की प्राप्ति होना कितना कठिन है ? और जिसे यह अलभ्य लाभ प्राप्त हुआ हो, उसकी कितनी बड़ी पुण्याई समझनी चाहिए ? ऐसे चिन्तामणि के समान संयम को प्राप्त करके जो कंकर की तरह उसे फेंक देते हैं वे बड़े ही अज्ञान और अभागे हैं। इसके विपरीत जो सम्यक् प्रकार से, त्रिकरण की विशुद्धता के साथ संयम की आराधना, पालना और स्पर्शना करते हैं, वे महाभाग्यशाली उत्तम प्राणी हैं । वे ही मोक्ष को प्राप्त करने में समर्थ होते हैं ।
(८) तपधर्म -- जैसे मृत्तिकामिश्रित स्वर्ण को आग में तपाने से वह शुद्ध हो जाता है, उसी प्रकार जिसके द्वारा आत्मा में अनादि काल से लगे हुए विकार भस्म हो जाते हैं, वह तप कहलाता है। काम क्रोध आदि षड्
* ६ प्रकार से नपुंसक -१ राजा ने अन्तःपुर के रक्षणार्थ लिंग छेदन कर नाजर बनाया, २ नुकशान लगते अङ्ग शीतल पड़ा. ३ मन्त्र से ४ औषध से ५ ऋषि के शाप से और ६ देवयोग से, इन ६ कारणों से नपुंसक बने जिनको दीक्षा देने में हरकत नहीं, किन्तु जो जन्म से नपुंसक होवे उसको दीक्षा प्राप्त नहीं होती है।