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(ख) जो पुरुष 'सन्मार्ग को छोड़कर उन्मार्ग की ओर जा रहा है अथवा चला गया है, उसे फिर सन्मार्ग में स्थापित करने के लिए जो उपदेश दिया जाता है, वह विक्षेपणी कथा है। इस कथा के भी चार प्रकार हैं—– (१) अपने मत का प्रकाश करता हुआ बीच-बीच में अन्य मत के भी चुटकले कहता जाय, जिससे श्रोता को विश्वास हो जाय कि इनका मत भी हमारे मत से मिलता-जुलता है । (२) परिषद् में अन्य मतावलम्बी जब अधिक हों तब उनके मत पर प्रकाश डालता हुआ, बीच-बीच में मिथ्यात्व का भी जिक्र करता जाय, जिससे श्रोता मिथ्यात्व को त्यागने की इच्छा करे । (४) मिथ्यात्व का रूप बतलाते बतलाते, बीच-बीच में सम्यक्त्व का भी कथन करता जाय जिससे सम्यक्त्व ग्रहण करने की इच्छा करे ।
* उपाध्याय
(ग) जिस कथा से श्रोता के अन्तःकरण में वैराग्य भाव उमड़े, वह संवेगिनी कथा कहलाती है। इस कथा के भी चार प्रकार हैं: - (१) इस लोक में प्राप्त सम्पत्ति नित्यता प्रकट करना और मनुष्य जन्म, शास्त्रश्रवण और जिनभक्ति की दुर्लभता बतलाना, जिससे श्रोता सांसारिक पदार्थों से अनुराग हटावे और धर्म में अनुराग बढ़ावे । ( २ ) परलोक सम्बन्धी नरक आदि के दुःखों का और स्वर्ग-मोक्ष के सुखों का वर्णन करे, जिससे श्रोता नरक आदि के दुःखों से डरे और स्वर्ग - मोक्ष प्राप्त करने के लिए उत्सुक बने । (३) स्वजन मित्र आदि सांसारिक सम्बन्धियों की स्वार्थपरायणता और धर्मात्माओं की परोपकारपरता का वर्णन करे, जिससे श्रोताओं का चित्त कुटुम्बियों की
र से हट कर सत्संगति करने के लिए उत्सुक बने और (४) पर पदार्थों से सम्पर्क करने वाले, विभाव परिणति में रमण करने वाले विडम्बनाओं के पात्र बनते हैं और मुक्ति अर्थात् ज्ञान-ध्यान की आराधना करने वाले समस्त दुःखों से छुटकारा पाते हैं, इस प्रकार समझाना जिससे श्रोता पुद्गलों का परिचय त्याग कर ज्ञानादि रत्नत्रय की आराधना में उत्सुक बने ।
(घ) जिस कथा को सुन कर श्रोता की चित्तवृत्ति संसार से निवृत्ति धारण करे, उसे निर्वेगिनी कथा कहते हैं। इसके चार प्रकार हैं: - (१) चोरी, जारी आदि कितने ही कुकर्म ऐसे हैं जिनसे इसी लोक में राजदण्ड, कारावास, गर्मी, सुजाक आदि रोगों से पीड़ित होकर लोग अकालमृत्यु के